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________________ योग है। हमारा चलना भी योग है। हमारा प्रतिक्रमण भी योग है। हमने साधना को एक अलग अर्थ में बांध दिया। भगवान् महावीर ने कहा-चक्षु का उन्मेषनिमेष भी उपयोगपूर्वक करो। और जो व्यक्ति चक्षु का उन्मेष-निमेष उपयोगपूर्वक करता है, उसके कर्म की धारा आती है। पहले समय आती है, दूसरे समय वह उसे भोगता है और तीसरे समय समाप्त कर देता है। इतना सरल होता है । यह भी एक प्रक्रिया है। __ शरीर को साधना, श्वास को साधना और उसके द्वारा मन को शांत करना वह भी एक प्रक्रिया है। दोनों साधना की प्रक्रियाएं हैं। अब चुनाव हमें करना है कि आज किसकी ज़रूरत है । रोटी की भी जरूरत है, दूध की भी जरूरत है और साग की भी ज़रूरत है। यह निर्णय तो स्वयं व्यक्ति को करना है कि आज क्या खाना है ? पेट गर्म हो गया है और गड़बड़ा रहा है तो दूध की ज़रूरत नहीं। दूध की ज़रूरत तब है, जब पेट ठीक है, स्वस्थ है। पेट ठीक नहीं है, दस्तें लग रही हैं तो दूध और अधिक नुकसान कर देगा। यह तो किस समय किस क्रिया का उपयोग है, किस पद्धति का हमारे लिए कब उपयोग है, यह पद्धतियों का चुनाव करना एक प्रश्न है । उपयोगिता के कोण से दोनों पद्धतियां हमारे लिए उपयोगी हैं। चंचलता का चौराहा : ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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