SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमें दीखता कुछ है और कारण नीचे कुछ और होता है । एक आदमी को आंखों से कम दिखायी देने लगा। उसने डॉक्टरी चिकित्सा करवायी, कोई लाभ नहीं हुआ। डॉक्टर देखता है, आंख बिलकुल ठीक है। उसमें कोई खराबी नहीं है । परन्तु दिखायी साफ़ नहीं देता है। रोगी गया मनोवैज्ञानिक के पास। मनोवैज्ञानिक तो यह नहीं देखता कि आंख ठीक है या खराब। वह पूछता है कि तुम्हारी स्मृतियां क्या हैं ? तुमने क्या-क्या किया है ? उसने बताते-बताते कहा, एक बार भय का एक ऐसा धक्का लगा कि आंख जिस रूप में थी वैसे ही रह गयी। मनोवैज्ञानिक ने आंख का कोई इलाज नहीं किया। उसने भय की ग्रंथि को खोलने का प्रयास किया। भय की ग्रंथि खुलते ही आंख ठीक हो गयी। उसने उसे अभय के वातावरण में रखा। प्रेम के वातावरण में रखा। मैत्रीपूर्ण बातें करता रहा। भय की बात धीरे-धीरे निकल गयी और वह अच्छी तरह देखने लग गया। ऐसे ही हज़ारों चिकित्साएं हो रही हैं और आश्चर्यकारी ढंग से हो रही हैं। जो भी बात चलती है, हम उसे एकांगी दृष्टि से न देखें। एकांगी दृष्टि से लेना तो हमारा मार्ग ही नहीं है। हम तो सबका समन्वय करके चलते हैं। हमारा सम्यक् दर्शन क्या है ? हमारा व्रत संवर क्या है ? व्रत संवर और सम्यक दर्शन-- ये दोनों ग्रंथि-विमोचन की क्रियाएं हैं। सम्यक दर्शन हो गया, ग्रंथिपात का मार्ग बंद हो जाता है। हम प्रतिक्रमण · करते हैं। प्रतिक्रमण क्या है ? प्रतिक्रमण को हमने एक पारम्परिक रूप दे दिया। अन्यथा प्रतिक्रमण आज के मनोविज्ञान के ग्रंथिविमोचन की प्रक्रिया से अधिक संदर मार्ग है। आप किसी मनोवैज्ञानिक के पास जाइये। वह सबसे पहले आपको सुला देगा। और वह आदेश देगा कि शिथिल होकर सो जाइये, तनाव को मिटा दीजिये । यानी पहले कायोत्सर्ग करायेगा। प्रतिक्रमण में हम पहले कायोत्सर्ग करते हैं। ठीक मनोवैज्ञानिक भी वही काम करता है । सुला देने के बाद वह निर्देश देगा कि बतलाओ, तुमने आज क्या किया, कल क्या किया, परसों क्या किया, एक महीने पहले क्या किया, वर्षों पहले क्या किया? वह बार-बार यह निर्देश देगा कि तुम मेरे सामने कोई बात छिपाओ मत । जैसे भोला बच्चा अपनी मां के सामने बात कहे, वैसे ही कहते चले जाओ। प्रतिक्रमण क्या है ? पुरानी बातों को याद करो। दशवकालिक में आता है'आलोएज्ज जहक्कम-क्रम से आलोचना करो। अगर व्यतिक्रम हो गया तो फिर वापस चलो। मनोवैज्ञानिक भी ऐसा ही कहता है कि क्रम से सारी बातें कहते चले जाओ। ___ क्या प्रतिक्रमण हमारी साधना नहीं है ? बहुत बड़ी साधना है । हरिभद्र सूरी ने बहुत सुंदर बात कही थी-हमारा प्रतिक्रमण, हमारी ईर्या समिति, हमारी भाषा-समिति, हमारा प्रतिलेखन, हमारा आहार और उत्सर्ग सारा का सारा ६८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy