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________________ इन्द्रियों का उपयोग। मन की चंचलता है उपयोग। किन्तु उपयोग होता कब है ? निर्वृत्ति है, उपकरण है, किन्तु कान का पर्दा फट गया, फिर चाहे ढोल बज रहा हो, चाहे सायरन बज रहा हो, कुछ भी हो रहा हो, सुनायी नहीं देगा। सुनायी नहीं देगा तो मन क्षुब्ध नहीं होगा। । मन की चंचलता के तीन मुख्य संवेदन हैं : १. त्वचा का संवेदन। २. श्रोत्र का संवेदन। ३. चक्षु का संवेदन। ये तीनों हमें प्रभावित करते हैं। त्वचा का संवेदन सबसे बड़ा संवेदन है जो बहुत प्रभावित करता है हमारे मन को । दूसरा श्रोत्र का और तीसरा दर्शन का। त्वचा के संवेदन को आप शून्य कर दीजिये, श्रोत्र के संवेदन को शून्य कर दीजिये और चक्षु के संवेदन को शन्य कर दीजिये। फिर कितने ही रूप सामने आ जायें, कितने ही शब्द सामने आ जायें और कितने ही स्पर्श आ जायें, हमारे मन पर कोई असर नहीं होगा। हमारे मन में कोई क्षोभ पैदा नहीं होगा। पानी में एक ढेला फेंकते हैं और हज़ारों ऊमियां उठ जाती हैं। पानी में मियां उठती हैं पर वे ढेले के निमित्त से उठती हैं। हमारे मन में भी जो ये मियां उठती हैं-राग की मियां, द्वेष की ऊर्मियां, इच्छा की मियां, वासना की ऊर्मियां-ये सारी ऊर्मियां उठती हैं उत्तेजना को पाकर। प्रज्ञापना सूत्र में बहुत विस्तार से यह समझाया गया है कि निमित्तों के बिना अच्छी से अच्छी शक्तियां निकम्मी चली जाती हैं और बुरी शक्तियां भी निकम्मी चली जाती हैं। हम इस बात को गौण नहीं कर सकते कि जो निमित्त हैं, वे हमारे उपादान को अभिव्यक्ति देते हैं। बिना निमित्त के अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। विद्युत् की धारा प्रवाहित हो रही है किन्तु बल्ब नहीं है, आप प्रकाश नहीं कर सकते। प्रकाश तभी होगा जब उसे अभिव्यक्ति देने वाला बल्ब होगा। निमित्त उपादान को हमारे सामने रखता है। हम इस बात को मान लें. हमारे सामने कोई कठिनाई नहीं, कि मन को शांत करने से यह सब अपने आप ठीक हो जाता है। और मैं यह एकान्त की भाषा में नहीं कह रहा हूं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सीधा मन पर प्रहार करते हैं। किन्तु यह आपवादिक बात है। यह उन लोगों के लिए होती है, जिन्होंने काफी शक्ति का संचय पहले कर लिया है। इतनी शक्ति अजित है कि सीधा आक्रमण किया और विजय पा ली। किन्तु यह सामान्य प्रक्रिया नहीं है। सामान्य बात नहीं है। सामान्य बात है कि निमित्तों पर ध्यान केन्द्रित कर, निमित्त की समस्याओं को सुलझाकर फिर उपादान को वश में लाना। हम कर्मशास्त्र को अगर गहराई से पढ़ें तो हमें आश्चर्य होगा। उदय में आने चंचलता का चौराहा : ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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