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हैं तो मन कभी त्रिकाल में भी शान्त होने को नहीं है। इसलिए आज का हमारी विवेचन इसी रूप में था कि हम कार्य को छोड़कर कारणों को शान्त करने का प्रयत्न करें। अब इस विषय में जिज्ञासाएं प्रस्तुत की जा सकती हैं।
प्रश्न : समाधान
प्रश्न - शरीर की जो चंचलताएं होती हैं, वे केवल शरीर से ही नहीं होतीं । हमारा हाथ आगे बढ़ता है तो सुखद स्पर्श की कल्पना होती है। आंखें दौड़ती हैं तो उसके पीछे भी मन की कोई कल्पना होती है। शरीर की जो भी क्रियाएं होती हैं, मन की ओर नहीं जातीं । मन शरीर की ओर जाता है । मेरा ऐसा ख़याल है कि शरीर की अपेक्षा हम मन को शान्त कर लेते हैं, तो ये सारी क्रियाएं स्वत: ही शान्त हो जाती हैं । कृपया इसे स्पष्ट करेंगे ।
उत्तर - मन पर ध्यान देने वाले लोगों की शिकायत हमेशा यह रहती है कि मन स्थिर नहीं रहता । और यह प्रश्न हज़ारों-हजारों लोगों के द्वारा पूछा जाता है । वे प्रयत्न करते हैं ध्यान करने का, पर चंचलता नहीं मिटती । इसका कारण यही है कि मन को तब तक शून्य नहीं किया जा सकता, जब तक हम संस्कार - कोष को नहीं समझ लेते, संस्कार कोष पर होने वाली उत्तेजना को नहीं समझ लेते और संस्कार - जागरण की प्रक्रिया का शमन कैसे हो सकता है, इस बात को नहीं समझ लेते । चंचलता आ रही है शरीर के माध्यम से या आ रही है स्मृति के माध्यम से । स्मृति और शरीर, ये दोनों बहुत निकट आ जाते हैं । निकट इस अर्थ स्मृतिका कोष जो है वह हमारे मस्तिष्क में है । और यह केवल मनोविज्ञान की दृष्टि से नहीं, जैन आगमों की दृष्टि से भी हम विचार करें तो जितना हमारा वीर्य है, शक्ति है, वह सारी की सारी पौद्गलिक शक्ति के आधार पर होती है । यह मस्तिष्क हमारी मनःपर्याप्ति है । यह मन की ऊर्जा का केन्द्र है । प्राण की ऊर्जा उत्पन्न होती है, मस्तिष्क से और स्मृति के प्रकोष्ठों से । स्मृति के जो प्रकोष्ठ हैं, उनको केन्द्रित किया जाता है जैसा कि मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग किया । एक कुत्ते के ज्ञानवाहक तंतु को काट दिया। आंख खुली, वह देखता है, पर उसे पता नहीं कि क्या देखता है। समझ नहीं पाता । केवल देखता है । जैसे आजकल क्रोध
तंतुको काट देते हैं तो फिर क्रोध नहीं आता । क्रोध की सामग्री सामने है, फिर भी गुस्सा नहीं आयेगा । शरीर और मन दोनों की मिली-जुली क्रिया है पर्याप्ति और प्राण | पर्याप्ति के बिना प्राण का कार्य नहीं होता । पर्याप्ति के बिना प्राण का प्रयोग भी नहीं हो सकता । उपकरण इन्द्रिय ख़राब है, निर्वृत्ति इन्द्रिय खराब है । हम देख नहीं सकते। हम सुन नहीं सकते। हम कुछ भी नहीं कर सकते । यह तब होता है जब निर्वृत्ति, उपकरण और लब्धि का उपयोग होता है । उपयोग चौथी कक्षा में आता है । उपयोग है मन की चंचलता । सारा उपयोग नहीं, किन्तु
६४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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