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________________ गे। प्रत्येक व्यक्ति को एक-एक हज़ार रुपया, अगर एक दिन के लिए भी आंख नहीं मलो, शरीर को नहीं खुजलाओ और पानी में हाथ नहीं डालो तो । लोभ था रुपयों का और इधर विवशता थी आदत की, संस्कारों की । परन्तु लोभ बड़ा था, इसलिए तीनों ने स्वीकार कर लिया । वह व्यक्ति उन तीनों को नौका में बैठाकर चल पड़ा। तीनों थे, साथ में कुछ और लोग भी थे। चलते गये, ते गये किन्तु आख़िर में जब स्मृति तीव्र होती है, उस समय आदमी को दुर्बल बना देती है, संकल्प को क्षीण बना देती है । स्मृति प्रबल हुई। संस्कार जागा । रहा नहीं गया। एक ने सोचा, क्या करूं ? ऐसे तो नहीं होगा । वह बोला, "मैं तुम्हें आज एक बात सुनाता हूं । मेरे था एक मामा और मामा के थी बकरी । करी के कान इतने बड़े थे कि जब वह चाहती अपनी आंखों को ऐसे मल लेती " -यों कहकर उसने आंखें मल दीं। दूसरे ने सोचा, -- अरे ! इसने तो काम कर लिया। उसकी स्मृति और जाग गयी। उसने कहा, “तुम कैसी बेवकूफी की बात करते हो ? मैं इससे भी बड़ी बात कहता हूं । मेरे था एक दादा। और इतना बड़ा पहलवान था कि वह सुबह अखाड़े में जाता और अखाड़े की मिट्टी लेकर अपने शरीर को मलता, रगड़ता और इस प्रकार मलत-रगड़ता ।" उसने अपने शरीर को भी रगड़ दिया । तीसरे की स्मृति भी जाग उठी। उसने कहा, “तुम दोनों बेवकूफ हो। कहां तुम्हारा मामा और कहां तुम्हारा दादा ! मरे हुए की बात क्या बताई जाये ? उनको तो श्रद्धांजलि देनी चाहिए।" श्रद्धांजलि के मिष से उसने अपने दोनों हाथ पानी में डाल लिये । यह क्या है ? पानी में हाथ डालने से उसे कोई आनन्द नहीं आया। आंख मलने से उसे कुछ मिला नहीं। शरीर को मलने से उसे कुछ मिला नहीं, शरीर को खुजलाने से उसे कुछ मिला नहीं । यह है स्मृति का आवेग । स्मृति जब तीव्र होती है, और वह स्मृति जब आदत के रूप में बन जाती है, जब उत्तेजना करती है, तब व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है, स्मृति के अधीन हो जाता है। यानी चंचल हो उठता है, क्षुब्ध हो उठता है । यह क्षोभ, यह उत्तेजना और यह चंचलता, इस स्मृति के कारण होती है । कल्पना के कारण भी ऐसा ही होता है और विचार - प्रवाह में भी ऐसा ही होता है । उत्तेजना क्यों मिलती है ? इसके दो कारण हैं। पहला कारण है—विषय की सन्निधि और दूसरा कारण है - आन्तरिक । विषय सामने आया, आंख ने पकड़ा, आंख का संवेदन मस्तिष्क तक पहुंचा, मन तक पहुंचा और मन की चंचलता बढ़ गयी। यह होती है बाहरी उत्तेजना। एक होती है भीतरी उत्तेजना । वह हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । वह है वायु और प्राण । श्वास और वायु । वह है आन्तरिक उत्तेजना । हमारी शरीर की सारी क्रिया वायु के द्वारा संचालित होती है । यदि ६० : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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