________________
होता है । निर्णय होता है और उसके बाद धारणा हो जाती है, अनुभव का संचय हो जाता है, शक्ति का संचय हो जाता है ।
1
शक्ति-संचय तक हम एक कक्षा तक पहुंच जाते हैं । प्रत्यय और प्रत्यय से शक्ति-संचय यानी धारणा । अब फिर क्या होता है ? अगली प्रक्रिया शुरू होती है मन की । धारणा हो गयी । हमारे मस्तिष्क में धारणा के प्रकोष्ठ हैं । प्रत्यय आता है और तत्काल चला जाता है । प्रत्यय सामने नहीं रहता । हमने एक व्यक्ति को देखा । व्यक्ति चला गया। किंतु प्रत्यय या निर्विकल्प ज्ञान अपने संस्कार छोड़ जाता है । मस्तिष्क में एक परिवर्तन होता है कि वह वहां संचित रह जाता है । अब क्या होता है ? प्रत्यय तो चला गया। हमारे मन में एक प्रतिमा बन गयी। दूसरी कोई उत्तेजना सामने आती है, वह धारणा फिर जागृत हो जाती है । उसे हम कहते हैं स्मृति । संस्कार के जागरण से होने वाला संवेदन स्मृति कहलाता है । संस्कार जागा, जो वासना में था, वह जागृत हुआ, स्मृति हो गयी । संस्कार और वासना का एक नाम है अविच्युति । वह च्युत नहीं होता । जो अनुभव था, वह च्युत नहीं होता । वह टिका रह जाता है । वही हमारे सामने फिर स्पष्ट होता है, स्मृति बन जाती है । हमारी चंचलता और क्या है ? मन की तीन क्रियाएं हैंस्मृति, विचार और कल्पना । इनका नाम है चंचलता । यदि हमारी स्मृति न हो, चंचलता हो नहीं सकती । जब ध्यान करने बैठते हैं, एक के बाद एक अनुभव याद आते जाते हैं । ऐसा लगता है कि मानो कोई किवाड़ खुल गया, नाला खुल गया, और पानी बहता चला आ रहा है। स्मृति का नाला खुल जाता है, स्मृति का दरवाज़ा खुल जाता है और वह ऊपर से ऊपर आने लग जाती है । यह है हमारी चंचलता ।
1
दूसरी हमारी चंचलता है कल्पना । हम संकल्प और विकल्प करने लग जाते । यह कल्पना क्या है ? यह भी स्मृति का ही एक परिणाम है । अगर स्मृति नहीं है तो कल्पना नहीं हो सकती । कल्पना स्मृति का ही एक रूप है ।
मनोविज्ञान तीन बातें मानता है-स्मृति, प्रतिमा और कल्पना । हमने एक मकान देखा । हम आगे चले गए। मकान तो चला गया। किंतु मकान की प्रतिमा हमारी आंखों के सामने आ जाती है, वह प्रतिमा बन जाती है । प्रतिमा क्या है ? जैसी स्मृति होती है वैसी प्रतिमा वन जाती है। कल्पना कर हम कुछ न कुछ नया और जोड़ देते हैं । एक आदमी गर्मी में बैठा है तर-बतर हो गया । यह हमारा प्रत्यय है। गर्मी चली गयी। गया। और ठंडक भी हो गयी । स्मृति उभरती है— ओह ! कितनी गर्मी थी ? किस प्रकार मैं पसीने से तर-ब-तर था । यह एक प्रतिमा हमारे सामने आ जाती है । कल्पना में क्या होता है ? कोई मित्र आया । अरे भाई ! क्या पूछते हो, आज तो कितनी भयंकर गर्मी थी। गर्मी क्या थी, आग बरस रही थी । अब यह आग
।
लूएं चल रही हैं । पसीने से
सांझ का समय आ
५८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org