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चंचलता का चौराहा
• पहली चंचलता है-स्मृति । • दूसरी चंचलता है-कल्पना । • तीसरी चंचलता है—विचार ।
स्थिरता क्या है ? स्मृति का न होना, कल्पना का न होना और विचार का न होना ।
महामंत्री चाणक्य जा रहे थे। एक गांव में ठहरे। एक बुढ़िया के घर भोजन करने के लिए गये । बुढ़िया ने अच्छा आतिथ्य किया। आवभगत की। और जैसी भारत की परंपरा रही है, अतिथि के स्वागत करने की, उसी के अनुरूप उनका स्वागत किया। भोजन के लिए बैठे। बुढ़िया ने खिचड़ी परोसी। चाणक्य ने बैठते ही हाथ डाला मध्य में। खिचड़ी गर्म थी। हाथ जल उठा। एक श्वास के साथ हाथ को उठाया और हाथ को हिलाने लगे। बुढ़िया ने देखा और वह तत्काल बोल उठी- लगता है तुम भी चाणक्य जैसे महामूर्ख हो ?" चाणक्य ने अपना नाम सुना। वे सकपका गये। मैं मूर्ख कैसे ? चाणक्य और मूर्ख! यह कैसे हो सकता है ? चाणक्य अपने युग का महापंडित था और महान् विद्वान् था। न केवल अपने युग का बल्कि भारतीय परंपरा में राजनीतिक विचारदृष्टि से चाणक्य एक ऐसा व्यक्ति हुआ है, जिसकी तुलना अभी तक दूसरे व्यक्ति से नहीं हो रही है। वह चाणक्य और बुढ़िया ने कहा-मूर्ख ? चाणक्य को बहुत आश्चर्य हुआ। वह बोला- मां! चाणक्य मूर्ख कसे ?” बुढ़िया को क्या पता, यह कौन बैठा है ? उसके सामने तो एक अतिथि था, पाहुना था। वह बोली-"क्या तुम नहीं
चंचलता का चौराहा : ५५
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