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का संचालन होता है । मस्तिष्क विकृत होता है तो मन की क्रिया विकृत हो जाती है । मस्तिष्क स्वस्थ होता है तो मन की क्रिया स्वस्थ होती है। दोनों का गहरा संबंध है ।
अब प्रश्न रहा भावना पक्ष का। इसका बहुत संबंध है हमारे हृदय से और कुछ संबंध होता है मज्जादंड से । भावनाओं का नियंत्रण करना या भावनाओं को छोड़ना, यह मज्जादंड का काम है ।
एक संन्यासी था । स्त्रियां और पुरुष उस संन्यासी के पीछे-पीछे लग जाते थे । वह कोई मज्जागत चीज़ ऐसी देता था कि उसका संस्कार बैठ जाता था । बाद में वह पकड़ा गया । खोज की गई। उसने कहा कि जब तक यह मज्जा का अंश नहीं निकल जाता, तब तक उनका विचार बदलेगा नहीं । इसीलिए श्रावक के लिए कहा गया है कि उसकी मज्जा धर्म के प्रेम से अनुरक्त होती है । भावनात्मक चीजें जितनी भी दी जाती हैं, उनका सबसे अधिक प्रभाव होता है हृदय चक्र पर। यह भावना का मुख्य केंद्र है। इसका नियंत्रण होता है मस्तिष्क के नीचे मेरुदंड से । मेरुदंड और मस्तिष्क के बीच जो गर्दन का हिस्सा है, वह है मज्जादंड । जो चीज़ मांस तक पहुंची, उसका उतना प्रभाव नहीं पड़ता। जो मज्जागत हो गई, अस्थिगत हो गई, उसका प्रभाव तेजी से पड़ता है । जो बोन टी० बी० हो जाती है, उसका असर अधिक पड़ता है । अस्थि से भी आगे जब मज्जा में पहुंच जाती है तो उसका भयंकर प्रभाव होता है । यह सारे संस्कार हैं मज्जा के | यह काम मन का नहीं है। उसके नीचे का है। राग-द्वेषात्मक आदि जितनी भावनाएं हैं, उन पर नियंत्रण पाना, उन पर कंट्रोल पाना मेरुदंड का, मज्जादंड का और कंठमणि का काम है । भावना और चिंतन दोनों अलग-अलग हो जाते हैं ।
प्रश्न - भाषणों की अपेक्षा क्या प्रयोगों की ओर ध्यान देना अधिक उचित नहीं है ? क्या प्रयोग करने के बारे में भी हमारा कुछ चिंतन है ?
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उत्तर - प्रश्न बिलकुल ठीक है, परंतु मैं कोई जादूगर नहीं हूं कि एक डंडा घुमा दूं और सब कुछ सिद्ध हो जाए । यह प्रक्रिया भी श्रेष्ठ नहीं है । साधक को बता देना है कि ऐसा ऐसा करो। करना तो आपको स्वयं है और वास्तव में समुचित प्रक्रिया भी यही है । व्यक्ति को स्वयं को ही करना चाहिए। कुछ लोग ऐसा करते भी हैं । डॉक्टर की तरह हृदय का प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता । अब रहा प्रश्न चित्त - निर्माण का, चित्तातीत अवस्था के निर्माण का । आप जानते हैं कि हमारी कुछ कठिनाइयां हैं। हम यह निश्चित जानते हैं कि केवल संवर में ही हमें नहीं जाना है, संवर को भी छोड़ देना है, संवरातीत हो जाना है। मंजिल तो हमारी वहां तक है, फिर भी हमें निर्जरा के साधन अपनाने होंगे। कुछ ऐसी जटिलताएं हैं। इन जटिलताओं को पार करना है । जंगल को पार करने के लिए
चित्त का निर्माण: ५३
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