________________
है। क्योंकि जब हम स्वाभाविक पर्याय में रहते हैं तब हमें किसी निमित्त की आवश्यकता नहीं रहती। ये सारे वैभाविक पर्याय हैं। चित्त का निर्माण चाहे बुरा होता है तो वैभाविक पर्याय है और चाहे अच्छा होता है तो वैभाविक पर्याय है। स्वाभाविक पर्याय तो नहीं है। किन्तु यह वैभाविक पर्याय भी हमारे लिए आवश्यक होता है, दूसरे वैभाविक पर्यायों का या समस्याओं का पार पाने
के लिए।
स्वस्थ चित्त के निर्माण के लिए योग के आचार्यों ने विचार किया है। एक सामान्य उदाहरण दं। भोजन किया और उसके बाद जो व्यक्ति समझता है कि पाचन ठीक नहीं है, अग्नि मंद है, उसे क्या करना चाहिए ? उसके लिए निर्देश दिया गया है कि तुम भोजन के बाद सूर्य का ध्यान करो। सूर्य की कल्पना करो। अग्नि की कल्पना करो। इससे तेजस् की कल्पना होती है। हमारे मन की परिणति तेजोमय होने लग जाती है। दूसरी प्रक्रिया निर्माण की है । अर्थात् पूरक की। हम जिस प्रकार के चित्त का निर्माण करना चाहते हैं, उसमें तेजस्-प्रधान तत्त्व की आवश्यकता है । या शीत-प्रधान तत्त्व की आवश्यकता है। शरीर में गर्मी लाना और चित्तपर्याय को उष्णता के द्वारा उत्तेजित करना है तो एक प्रकार की हमें प्रक्रिया करनी होगी कि दाहिने स्वर से, दाहिने नथुने से श्वास लेकर कुंभक करें और कुंभक कर बाएं नथुने से निकाल दें। इस क्रम को बार-बार दुहराएं और इतनी बार दुहराएं कि जितनी बार दुहरा सकें। लेना दाएं स्वर से और छोड़ना बाएं स्वर से। आप पचास बार ऐसा करके देखें। सर्दी के मौसम में भी पसीना आने लग जायेगा। इतना गर्म स्वर हो जायेगा कि इस स्थिति में भी कुछ अवस्थाओं का निर्माण किया जाता है । तिब्बत में ऐसा प्रयोग भी चलता है। वहां एक प्रयोग चलता हैहीट-योग का। एक साधक को सर्दी में बर्फ पर लिटा देते हैं और उससे कहते हैं पसीना लाओ। वस्त्र सारा खोल देते हैं और फिर पूरक का प्रयोग करते हैं। सूर्य स्वर से श्वास लेने का प्रयोग करते हैं। प्रयोग करते-करते जब पसीना चुने लग जाता है, तब वह साधक अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है।
आचारांग सूत्र में आता है कि जिस समय दूसरे लोग सर्दी में निवास-स्थान की खोज करते थे, उस समय भगवान् महावीर बिना वस्त्र बाहर जाकर चंक्रमण करते थे। क्या उन्हें शीत का अनुभव नहीं होता था ? होता था। परन्तु कुछ प्रक्रियाएं ऐसी हैं, उनके द्वारा उन पर विजय पा ली जाती है। अब आप देखें कि आप जा रहे हैं, ऐसी स्थिति आ गयी है कि बहुत अधिक सर्दी पड़ने लगी। मकान आया नहीं। हवा तेज़ चल रही है। क्या करें ? एक उपाय किया जा सकता है और वह है योग का सरल फार्मूला। उस समय जितने सूर्य जैसे तेजस् पदार्थ हैं, उनकी स्मृति बार-बार लाइये। बार-बार दुहराइये। और मन का वैसा निर्माण कीजिये। आपका संकट बहुत अंशों में दूर हो जायेगा। सर्दी की अनुभूति बहुत
चित्त का निर्माण : ४७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org