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________________ कि हमें क्या होना है ? इस आधार पर उसके चित-निर्माण की प्रक्रिया शरू होती है। यह परिणमनशील मन की अवस्थाओं में से एक वैसा निर्माण करना, सघन निर्माण करना, जिससे कि वह अवस्था हमारे लिए मुख्य बन जाये, टिक जाये और इतनी सघन बन जाये कि दूसरे निर्माण की अवस्था उसे तोड़ न सके; उसे टकरा न सके। वह होता है सघन अवस्था का निर्माण। ऐसी सघन अवस्था का निर्माण जो हमारे लिए त्राण बन सके, कवच बन सके। चित्त-निर्माण की स्थिति से सब लोग परिचित हैं। कोई भी व्यक्ति अपरिचित नहीं है। जिस प्रकार के चित्त का निर्माण हो जाता है, वही उसके लिए सुख का विषय बन जाता है। कुछ मछुए मछली पकड़ने के लिए गये। काफ़ी तेज बरसात होने लगी। अपना काम वे कर नहीं सके, इसलिए एक बगीचे में चले आये । वर्षा तेज हो गयी। बाहर जा नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने माली से कहा-स्थान दे दो। माली ने स्थान दे दिया। मछुए सो गये। आसपास में फूल पड़े थे। मछए लेट गये, परन्तु नींद नहीं आ रही थी। थोड़ी देर बाद उठकर बैठ गये और बोलेनींद नहीं आ रही है क्योंकि कहीं से दुर्गन्ध आती है। परस्पर बातचीत की। फिर माली से कहा-हमें नीद नहीं आ रही है। माली ने कहा-मकान तो ठीक है। पानी की छीटें भी अन्दर नहीं आ रही हैं । शान्ति से सो जाओ। मछुए लेट गये, परन्तु कुछ देर बाद पुनः उठ बैठे और कहा-कहीं से दुर्गन्ध आ रही है, इसलिए नींद नहीं आती है। माली ने कहा-दुर्गन्ध तो कुछ भी नहीं है, इधर तो पुष्प पड़े हैं खुशबू आ रही है। माली समझदार था। उसने कहा-तुम लोगों के पास में क्या है ? उन्होंने कहा-मछली रखने की टोकरियां हैं। माली ने कहा-तुम्हें नींद ऐसे नहीं आयेगी। इन टोकरियों को अपने-अपने मुंह पर डाल लो, नींद आ जायेगी। मछुओं ने ऐसा ही किया और उन्हें नींद आ गयी। ___ यह था चित्त का निर्माण। उनका चित्त ऐसा बन गया था कि मछली की वासना उनके लिए प्रिय बन गयी। वे उसमें आनन्द का अनुभव करते। पुष्प की खुशबू उनके लिए दुर्गन्ध दे रही थी और मछली की वासना सुगन्ध देती थी। ___ मछुओं का ही नहीं, पता नहीं इस प्रकार का चित्त कितने लोगों का होता है। बहुत सारे लोग अगर भोजन करते समय लड़ाई न करें तो उनके वह भोजन पचता ही नहीं है । क्योंकि उनके चित्त का निर्माण ऐसा हो जाता है। उस समय वह संस्कार पूरा होता है। वैसी स्थिति आती है तो उन्हें आनन्द का अनुभव होता है, अन्यथा वैसा नहीं होता। चित्त का निर्माण हर व्यक्ति करता है और बिना चित्त का निर्माण किये कोई जी नहीं सकता। प्रश्न है कि हम कैसे चित्त का निर्माण करें? यह चुनाव व्यक्ति को करना है जो कि 'कुछ होना चाहता है, जो स्वयं कुछ बनना चाहता है, कुछ पाना चाहता है। जो केवल अनायास प्राप्त होता है, उसका खिलौना चित्त का निर्माण : ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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