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चित्त का निर्माण
• बिना चित्त का निर्माण किए कोई जी नहीं सकता। • किस प्रकार के चित्त का निर्माण करें? • वैसे चित्त का निर्माण करें जैसा हम होना चाहते हैं । • चित्त-निर्माण का महत्त्वपूर्ण सूत्र है
• ध्येय का चिन्तन। • ध्येय के साथ तदात्म होना।
आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है कि जब वस्तु का संक्षेप करते हैं तब वह अपर्याय हो जाती है। पर्याय को स्वीकार नहीं करते तब वस्तु सिमट जाती है और जब वस्तु का विवेचन करते हैं तब द्रव्य समाप्त हो जाता है, केवल पर्याय ही शेष रह जाता है। दो अवस्थाएं हैं-एक पर्याय की अवस्था और दूसरी द्रव्य की अवस्था यानी वस्तु की अवस्था। ये दोनों अवस्थाएं हमारे जीवन में घटित होती हैं। एक है अस्तित्व और एक है व्यक्तित्व। अस्तित्व का मतलब है होना और व्यक्तित्व का मतलब है कुछ होना । अस्तित्व की अनुभूति केवल होने की अनुभूति है। हम हैं, इस के सिवाय कोई अनुभव नहीं होता। इस अस्तित्व की अनुभूति में हमारी पूर्ण चेतना सक्रिय होती है। अखंड चेतना सक्रिय होती है। हम कुछ हैं, यह हमारे व्यक्तित्व की अनुभूति है। इसमें हमारी खंड चेतना सक्रिय होती है। हमारी चेतना की ये दो अवस्थाएं हैं, जिन्हें हम योग की भाषा में चित्तातीत अवस्था और चित्त-निर्माण की अवस्था कह सकते हैं।
एक होती है चित्तातीत अवस्था जिसमें चित्त नहीं होता। एक होती है चित्त
४२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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