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और उस चोट के बिना अहंकार और ममकार की भावना जागृत नहीं होगी। और वह जागृत नहीं होगी तो मन की धारा में उसका प्रवाह नहीं होगा। इस प्रकार अगर मूल तक जाएं, गहराई में जाएं, तो शरीर की स्थिरता और चंचलता पर हमारे संस्कारों का, हमारी वृत्तियों का, अहंकार और ममकार का प्रकट न होना या होना बहुत कुछ निर्भर है, यह हमें स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा।
शरीर-दर्शन : ४१
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