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हैं जो कि आत्मा का दर्शन है। वह दर्शन तब हो सकता है जबकि हम संस्कार से अतीत हों, इन्द्रियों से अतीत हों। इन सबके पार, उस क्षितिज के पार जो दर्शन है, वह आत्मा का दर्शन है, वह चेतना का दर्शन है और वह हमारी आन्तरिक सहजता, निर्मलता और स्वच्छता का दर्शन है।
मण्डितपुत्र ने भगवान महावीर से पूछा-'भन्ते ! संस्कारों का निर्माण क्यों होता है ? और कैसे होता है ?' भगवान ने कहा---'संस्कार का निर्माण संस्कार के निमित्त से होता है । और होता है क्रिया से। प्राणी में कम्पन और स्पंदन होता है। कम्पन के बिना कोई भी संस्कार निर्मित नहीं होता। कम्पन की अनेक क्रियाएं होती हैं, तब उसके बाद संस्कार निर्मित होता है, परिणति होती है और अमुक-अमुक भाव का परिणमन होता है।
जो अकम्पित है, जिसमें कम्पन नहीं है, स्पंदन नहीं है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। परिवर्तन या परिणमन का मूल है कम्पन, क्रिया। अक्रिया में कोई भी परिवर्तन नहीं हो सकता। सारा का सारा परिवर्तन क्रिया में होता है, क्रियाशील में होता है और क्रियाशील के द्वारा होता है। मनुष्य क्रिया करता है तब कम्पन होता है। क्रिया का मूल आधार शरीर है । यदि शरीर नहीं है तो कोई भी क्रिया नहीं हो सकती। यदि शरीर की क्रिया नहीं है तो कोई भी क्रिया नहीं हो सकती। शरीर की क्रिया जितनी तीव्र होगी, कम्पन उतना ही तीव्र होगा। और संस्कार का निर्माण भी उतना ही तीव्र होगा। शरीर को स्थिर और शान्त करने का मूल्य यही तो है, वह जितना ही स्थिर और शान्त होता है, उसके द्वारा होने वाली सारी क्रियाएं, फिर वे वाणी की हों, मन की हों या श्वास की हों, शान्त हो जाती हैं। इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा, क्रिया के द्वारा संस्कार का निर्माण होता है, अक्रिया के द्वारा नहीं होता। संस्कार का विलय उसी स्थिति में होता है जब क्रिया बन्द हो जाती है।
हमारा शरीर आस्रव है, दरवाज़ा है । दरवाज़ा खुला है, तभी हम इतने लोग एकत्रित हो गये। यदि दरवाजा खुला नहीं होता, हम इतने लोग एकत्र नहीं हो पाते। दरवाज़ा खुला होता है, तब कुछ भी आ सकता है, मनुष्य भी आ सकता है, पशु भी आ सकता है, आंधी भी आ सकती है, धूल भी आ सकती है और हवा भी आ सकती है । दरवाज़ा बन्द होता है तो कुछ भी नहीं आ सकता। हमारा शरीर एक दरवाज़ा है, आस्रव है। नौका पानी में तैर रही है। छेद हो गये। नौका में पानी भर गया, वह डूबने लगी। नौका क्यों डबने लगी? क्योंकि वह सास्रव हो गयी, आस्रव-सहित हो गयी। छेद हुआ कि पानी आ गया। और पानी आ गया तो वह भारी हो गयी। और भारी हुई कि डूबने लगी। उस समय यदि कुशल कर्णधार होता है, कुशल नाविक होता है, वह सबसे पहले उन छेदों को भरने की कोशिश करता है । छेदों को भर देता है। पानी आना बन्द हो जाता है। और जो
शरीर-दर्शन : ३५
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