SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमने इस दृष्टि से शरीर को नहीं देखा। और देखें तो बहुत अद्भुत चीजें हमारे शरीर में विद्यमान हैं । उदाहरण के लिए, हम रीढ़ की हड्डी के विषय में कुछ समझें । शरीरशास्त्र की दृष्टि से बहुत बड़ा महत्त्व है उसका। किन्तु साधना की दृष्टि से उसका और अधिक महत्त्व है। हमारे श्वास की तीन प्रणालियां हैं। एक बायीं ओर, एक दायीं ओर और एक मध्य में। बायीं ओर की प्रणाली को चन्द्रस्वर या इड़ा, दायीं ओर की प्रणाली को सूर्यस्वर या पिंगला कहते हैं। एक है मध्यवर्ती प्राण की धारा। इसे कहते हैं सुषुम्ना । यह सुषुम्ना हमारे शरीर में ठीक वैसे ही है, जैसे एक ट्यूब की नली होती है। नली की भांति पोली। यह रीढ़ की हड्डी बिलकुल पोली है। ट्यूब की तरह है। और उस ट्यूब में जो पोल है वह है सुषुम्ना। उसमें से प्राण का जो प्रवाह प्रवाहित होता है, वह सचमुच ज्ञान-तन्तुओं को जाग्रत करता है, प्रतिभा को जाग्रत करता है और चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाता है। भगवान महावीर ध्यान करते, तब ऊंचा देखते थे, मध्य में देखते थे और नीचे देखते थे। ऊंचा लोक, मध्य लोक और नीचा लोक। यह क्या है ? हम इस लोक की बात छोड़ें। यह हमारा शरीर है। शरीर के तीन भाग हैं : १. ऊर्ध्वभाग। २. मध्यभाग। ३. अधोभाग। यह विभाग होता है नाभि से। नाभि है मध्यलोक । नाभि के ऊपर का हिस्सा है ऊर्ध्वलोक और नाभि के नीचे का हिस्सा है अधोलोक । ये तीन लोक हैं हमारे । इन तीन लोकों का दर्शन जो कर लेता है, वह सचमुच साधक बन जाता है। नाभि के नीचे कामकेन्द्र है, और उसके ऊपर ज्ञानकेन्द्र । हमारे प्राण की धारा नीचे की ओर जाती है तब चेतना का अधोवतरण हो जाता है। जब हम प्राण की धारा को ऊपर की ओर ले जाते हैं तब चेतना का ऊर्ध्वारोहण हो जाता है। चेतना ऊपर की ओर चली जाती है। नीचे ले जाना या ऊपर ले जाना, यह हमारी इच्छा, हमारी संकल्पशक्ति और हमारे ज्ञान पर निर्भर है। जो ऊंचे लोक को जानता है, यानी जो हृदय चक्र को जानता है, जो विशुद्धि चक्र को जानता है, जो आज्ञा चक्र को जानता है, जो सूर्य चक्र को जानता है वह अपनी चेतना को ऊपर की ओर ले जाता है। चेतना को ऊपर की ओर ले जाने के लिए शरीर की रचना को उस दृष्टि से देखना है कि हमारे ज्ञान के केन्द्र कहां हैं ? ज्ञान की ग्रन्थियां कहां हैं ? आप यह न समझें कि सारे शरीर में ज्ञान के केन्द्र हैं। यह ठीक बात है कि आत्मा सारे शरीर में व्याप्त है। और चेतना के ऊर्ध्वारोहण का या साधना का बहुत बड़ा सूत्र है, आत्मदर्शन। आचार्य योगीन्दु ने कहा है-जहां कहीं देखता हूं आत्मा ही आत्मा शरीर-दर्शन : ३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy