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एक सूक्ष्म दर्शन है । वह ऊपर के रंग, आकार, प्रकार को नहीं देखता, वह रचना को देखता है। वह संघटना को देखता है और वह देखता है अपनी उपयोगिता की दृष्टि से। तीसरा दृष्टिकोण है साधक का । वह शरीर का सूक्ष्मतम दर्शन है । जो डॉक्टर भी नहीं देख पाए हैं, वह चीज देखता है साधक । हमारे शरीर में साधना के इतने कोण हैं, साधना के इतने तथ्य हैं और साधना की इतनी चाबियां हैं कि अगर हम उन्हें घुमाना जानें तो बहुत कुछ पा सकते हैं ।
मुझे स्थूल दर्शन के बारे में कुछ नहीं कहना है । और सूक्ष्य दर्शन के बारे में, जो डॉक्टरी दृष्टिकोण है, उसके बारे में भी आज नहीं कहना है। वह भी जानना बहुत आवश्यक है पर अभी कुछ नहीं कहना है । मुझे आज तीसरी दृष्टि से शरीर देखना है । साधना की दृष्टि से शरीर को देखना है । शरीर साधना की दृष्टि से हमारे लिए कितना उपयोगी है, इस पर इतना बल क्यों ? वह इसलिए कि हमारे मन की शक्ति, हमारी इन्द्रियों की शक्ति या हमारी सारी शक्ति का केन्द्र है शरीर |
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आप जानते हैं कि हमारे पास मन है । पर मन कहां से आया ? हमारे पास वाणी हैं। वाणी कहां से आयी ? कोई भी जैन दर्शन को जाननेवाला यह जानता है कि मन का कोई अस्तित्व नहीं है । वाणी का कोई अस्तित्व नहीं है । अस्तित्व है एकमात्र शरीर का एक प्रकार से मन और वाणी, ये शरीर के ही उपभेद हैं, मूल नहीं हैं । एक योग है - काया । योग तीन नहीं हैं। योग एक हैकाया । काया का योग है । मन और वचन - ये दोनों बनते हैं काया के द्वारा । जो भी मन के लिए पुद्गल चाहिए, सामग्री चाहिए उस सामग्री का आकर्षण होता है काया के द्वारा । जो वचन के लिए चाहिए उसका आकर्षण होता है काया के द्वारा । मन्यमान मन होता है । मनन से पहले मन नहीं होता और मनन के बाद में मन नहीं होता । भाष्यमाणा भाषा होती है। बोलने के बाद भाषा नहीं होती और बोलने से पहले भाषा नहीं होती । भाषा और मन दोनों का अस्तित्व शरीर पर निर्भर है, काया पर निर्भर है, काययोग पर निर्भर है। मूलतः प्रवृत्ति है काया की ।
जीव शरीर को उत्पन्न करता है । शरीर वीर्य को उत्पन्न करता है, और वीर्य मन, वचन और काया की हलन चलन को उत्पन्न करता है । मूलत: अस्तित्व है शरीर का । सारी शक्ति का केन्द्र, सारी शक्ति का अधिष्ठान और सारी शक्ति का आयतन या हमारी आत्मा की जितनी भी अभिव्यक्ति है, उस सारी अभिव्यक्ति का जो एक चक्र है, वह है शरीर ।
पॉवरहाउस में जेनरेटर विद्युत्को उत्पन्न करता है । शरीर हमारी सारी शक्ति का जेनरेटर है, उत्पादक यन्त्र है, विद्युत्-यन्त्र है जो कि सारी विद्युत् को उत्पन्न करता है | और फिर वह यहां से प्रवाहित होती रहती है ।
३२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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