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प्राणवायु पहुंचाई जा सके, तो न जाने चेतना कितनी विकसित हो जाये । अनुभव की क्षमता कितनी बढ़ जाये ? और वह कोई विलक्षण व्यक्ति हो जाये। किन्तु ऐसा क्यों नहीं होता ? स्पष्ट है कि ज्ञान के अभाव में नहीं होता। एक अरब वायु कोषों में वायु पहुंचाना, फेफड़े के छह हजार छिद्रों में वायु पहुंचाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। जिन्हें ज्ञान होता है, वे थोड़ा-बहुत अधिक पहुंचा पाते हैं । अन्यथा बहुत ही कम पहुंचा पाते हैं। ___ हमारे मस्तिष्क में कितने ज्ञान-तंतु हैं ? कितने छिद्र हैं ? कितने प्रकोष्ठ हैं ? कई अरब, कई खरब कोष्ठ हमारे मस्तिष्क में हैं। एक मानसशास्त्री ने बताया कि एक-एक ज्ञान-तंतु को एक-एक कोष्ठ में ऐसे पंक्तिबद्ध किया जाये तो हिन्दुस्तान क्या, आज की दुनिया भर जायेगी। किन्तु उन कोष्ठों को, उन ज्ञान-तंतुओं को एक प्रतिशत क्या, आधा प्रतिशत भी कोई विकसित नहीं कर पाता।
नया ज्ञान होता है साधना के द्वारा। नयी स्मृतियां जागती हैं। नये अनुभव आते हैं। कैसे आते हैं ? कोई-कोई कोष्ठ जाग जाता है तो लगता है कि बहुत बड़ी उपलब्धि हो गयी। कितना बड़ा चमत्कार हो जायेगा, सारे कोष्ठों को छोड़कर, उनके चार आना हिस्से को भी हम जागृत कर दें तो? हमारी क्षमताएं बहुत अद्भुत हैं। हमारे शरीर की क्षमताएं, हमारे मानस की क्षमताएं, हमारे ज्ञान-तंतुओं की क्षमताएं इतनी भरी पड़ी हैं, किन्तु प्रशिक्षण के अभाव में, ज्ञान के अभाव में, हम ऐसा नहीं कर पाते।
प्रशिक्षण की बात बहुत महत्त्वपूर्ण है। मैं समझता हूं कि हमारा यह जो क्रम शुरू हुआ है, आचार्यश्री ने यह जो शृंखला शुरू की है यह शायद प्रशिक्षण के लिए ही शुरू की है या प्रशिक्षण की पृष्ठभूमि के रूप में कि इससे प्रेरणा जागे, हमारी भावना बढ़े और हमारी भावना में ऐसी जिज्ञासा, ऐसी प्यास जगे, कि जिस प्यास को बुझाने के लिए शायद प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी पड़े। तो यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है, अत्यन्त अनिवार्य और नितान्त आवश्यक है।
आचार्यश्री ने कहा-प्रशिक्षण का जो परिणाम हमारे सामने आता है, यह प्रत्यक्ष है। अबकी बार इन चार-छह महीनों में हमने प्रशिक्षण का थोड़ा क्रम चलाया। इसका परिणाम हमारे सामने कुछ इस रूप में आया कि ऐसे व्यक्ति जो हमारे विरोधी थे, संतों के पास कभी आते नहीं थे, आना नहीं चाहते थे, बात करना नहीं चाहते थे, वे लोग साधना-प्रिय बन गये हैं और हमारी उपासक श्रेणी में उनके नाम भी आ गये हैं । इसलिए मैं प्रशिक्षण को बहुत ही आवश्यक समझता हं और उसके सम्बन्ध में हमें गम्भीरतापूर्वक चिन्तन करना पड़ेगा। " प्रश्न-पिछली गोष्ठी में आपने विवेक प्रतिमा की चर्चा की। वह विवेक क्या है ?
उतर-विवेक का अर्थ है-दो चीज़ों को अलग करना, तोड़ना। जो मिला
२८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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