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________________ पद्धति, जैन योग या आगमों का उल्लेख किया जाता है, अन्यथा इस बात में कोई भेद दिखायी नहीं देता । आचार्यश्री ने कहा- जिसका क्रम परिपक्व नहीं हो गया है, तब तक उसे किसी न किसी साधना पद्धति का आलम्बन लेना ही होगा। आगे चलकर उस पद्धति का नाम छूट जायेगा । उस सत्य पर वह चलता जायेगा । चलते-चलते जो भी पद्धति उसके मन में बैठ गयी, वह उसे सही दिशा में ले जायेगी। अब जैसे हमारे मुनि दुलीचंदजी ने ध्यान की साधना की, उन्होंने कोई विशेष लक्ष्य निर्धारित नहीं किया था । परन्तु चलते-चलते उनको एक रास्ता मिल गया था । यह क्रम तो होता ही है और इस क्रम में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। प्रारम्भ में किसी न किसी रास्ते से चलना ही पड़ेगा, यह स्पष्ट मालूम होता है । प्रश्न - साधना के मार्ग में व्यक्ति का बौद्धिक होना आवश्यक है क्या ? हमारे वातावरण में बौद्धिकता की जितनी प्रेरणा है, उतनी साधना की प्रेरणा है क्या ? क्या साधना का प्रशिक्षण अनिवार्य नहीं है ? • उत्तर - हमारी चेतना के अनेक स्तर हैं । स्तरीय विकास हमारा होता है । हम यह नहीं मान सकते कि बौद्धिकता आवश्यक नहीं है । बौद्धिक स्तर बहुत ज़रूरी है और साधना के मार्ग में भी बौद्धिक स्तर बहुत जरूरी है। जिन साधकों बौद्धिक स्तर उन्नत होता है, उन्हें आध्यात्मिक साधना के अग्रिम तत्त्वों को पकड़ने में बहुत सुविधा और सहजता होती है। जिनका बौद्धिक स्तर निम्न होता है, उन्हें विकसित होने में कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं । कुछ व्यक्ति ऐसे हो सकते हैं। जो बिना बौद्धिक स्तर के ही साधना के सिरे पर पहुंच जाते हैं। पर यह विशेष स्थिति की बात सामान्य नहीं होती । आनुपातिक स्थिति में बौद्धिक स्तर का होना भी बहुत ज़रूरी है और जिनका बौद्धिक स्तर अच्छा होता है, उन्हें बहुत बड़ी सुविधाएं हो जाती हैं । ऐन्द्रिक स्तर, मानसिक स्तर और फिर बाद में अतीन्द्रिय स्तर आता है । वह स्तर होना आवश्यक है । अब प्रश्न है प्रशिक्षण का । यह बहुत आवश्यक है । यह ठीक है कि आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए बौद्धिक होना आवश्यक हो या न हो किन्तु बौद्धिक व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक होना बहुत ही आवश्यक है। और मुनि के लिए तो बहुत ही आवश्यक है। प्रशिक्षण की बात अपने आप में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । क्योंकि हमारी बहुत सारी क्षमताएं, जो हर व्यक्ति में होती हैं, अर्जित होती हैं । ज्ञान के अभाव में उन क्षमताओं का उपयोग हम नहीं कर पाते । हमारे फेफड़े में लगभग छह हजार छिद्र होते हैं सांस भरने के लिए, और एक फेफड़े में एक अरब वायु कोष होते हैं। छह हजार छिद्र होते हैं, किन्तु प्रायः आदमी मुश्किल से हज़ार, डेढ़ हजार छिद्रों तक वायु पहुंचा पाते हैं। साढ़े चारपांच हज़ार छिद्र तो निकम्मे ही पड़े रह जाते हैं । अगर फेफड़े के सारे छिद्रों में अमूल्य का मूल्यांकन : २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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