SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लग जाता है। प्रश्न-विभिन्न प्रकार की साधना-पद्धतियां हैं। किसी भी साधना पद्धति को स्वीकार कर जैन साधु आगे बढ़ सकता है क्या ? उत्तर-जहां साधना का प्रश्न है, वहां जैन या अजैन-यह भेद नहीं डाला जा सकता। साधना पद्धति शुद्ध अर्थ में साधना पद्धति ही है और अध्यात्म में यह भेद नहीं होता। यह भेद सांप्रदायिक होता है। किन्तु जैसा कि मैंने पिछली गोष्ठी में कहा था कि बहुत लोगों को यह भ्रांति है कि जैन परम्परा में साधना की पद्धति, पोग की पद्धति नहीं है। इसलिए जैन योग या जैन साधना पद्धति के बारे में कुछ बातें प्रस्तुत करनी पड़ रही हैं। अन्यथा अध्यात्म की गहराई में जानेवाले व्यक्ति के लिए यह कोई प्रश्न ही नहीं रहता। वहां जैन की साधना पद्धति है, वैष्णव की है या किसी तीसरे की है, ये सारे भेद विलीन हो जाते हैं । जहां दूध का प्रश्न है, वहां काली गाय का है, भूरी का है या लंगड़ी का है, यह प्रश्न समाप्त हो जाता है । वहां मात्र दूध का प्रश्न है । साधना का प्रश्न शुद्ध साधना का प्रश्न है । साधना की पद्धति में केवल यह देखना होता है कि किस आलम्बन से मन शांत हो रहा है, मन की पवित्रता बढ़ रही है और हमारा सहज अनुभव आगे विकसित हो रहा है, इस बात को मुख्यतया देखना होता है। पद्धतियां अनेक हैं। सब व्यक्तियों के लिए एक पद्धति काम करे, यह बात भी नहीं है। रुचि भी अलग होती है और ग्रहण की क्षमता भी अलग होती है। पकड़ने की भावना भी अलग होती है और परमाणुओं का संयोग भी अलग प्रकार का होता है। क्योंकि शरीर-रचना की भिन्नता के साथ इन सारी बातों में भिन्नता आ जाती है । इस परिस्थिति में हमें केवल विचार यह करना है, कि जहां साधना का प्रश्न है, वहां अन्ततः मुख्य साधना ही है। वह किसी भी शब्द से चिपकी हुई साधना नहीं है। जब साधना में हम आगे बढ़ें तब इन सब बातों को भुला ही देना है। भगवान् महावीर जैन नहीं थे। आज हम जैन हैं। महावीर किसी परम्परा में नहीं थे। किसी के शिष्य भी नहीं थे। स्वयं अनुभव किया। जो अच्छा लगा, उसका आचरण किया। उस समय भी अनेक पद्धतियां चालू थीं। पार्श्व की परम्परा के अनुयायी भी नहीं बने, श्रावक भी नहीं बने। उस कुल में जन्मे थे परन्तु पार्श्व के अनुयायी नहीं बने थे। कहा जाता है कि साधुओं के पास भी नहीं गए। धर्म भी नहीं सुना। किन्तु जैसा उन्हें लगा, वैसा किया। हमारी साधना की क्षमता जैसे विकसित हो, नामों के पीछे हमें कोई अर्थ विशेष नहीं जोड़ना है। जैन सूत्रों में, महावीर की वाणी में, साधना की या योग की पद्धतियां विकसित नहीं हैं, यह जो आज विस्मति हो गयी है और यह भ्रान्ति उत्पन्न हो गयी है, उस विस्मति और भ्रान्ति को निरस्त करने के लिए कुछ बार यह जैन साधना २६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy