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जिसका मन ऋजु है, वह होता है ऋजु । उस ऋजु आत्मा में धर्मं टिकता है । शरीर ऋजु है, इसका मतलब है जिसके शरीर की रीढ़ की हड्डी ऋजु है । यानी जिसकी ग्रीवा, जिसका सिर और जिसकी रीढ़ ऋजु है, वह व्यक्ति ऋजु होता है । इस बात को शायद हमने भुला दिया। काया की ऋजुता को भुला दिया । और आप निश्चित मानिए कि शरीर के ऋजु हुए बिना भाषा ऋजु हो नहीं सकती और मन ऋजु हो नहीं सकता । काया में कुटिलता है । जैसे ही आपकी रीढ़ की हड्डी थोड़ा-सा टेढ़ापन आया, विचारों में टेढ़ापन आ जायेगा । शरीर की सरलता कितना बड़ा महत्त्व है । आचार्यश्री के सामने जाते हैं, देखते हैं आंख सीधी है, बात कह देते हैं और जब देखते हैं कि आंख टेढ़ी है, चुपके से निकल जाते हैं ।
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शरीर की वक्रता मन की वक्रता को ला देती है । हम ऋजुता की बात को ठीक से समझ लें । काया में ऋजुता होगी तो भाषा में सरलता आयेगी । भाषा में कुटिलता नहीं आयेगी, वक्रता नहीं आयेगी । काया में सरलता होगी तो मन में सरलता आयेगी, मन में वक्रता नहीं आयेगी । मन में टेढ़ापन नहीं आयेगा ।
हमारे तीन नाड़ियां हैं - इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना । यह सुषुम्ना की सरलता वास्तव में काया की सरलता है, काया की ऋजुता है। इस विषय पर कभी विस्तार से बताया जा सकेगा । यह बहुत बड़ा विषय है । सुषुम्ना की सरलता ही काया की ऋजुता है । वह जब ऋजु होती है, तब भाषा की ऋजुता निष्पन्न होती है । वह ऋजु होती है तब मन की ऋजुता निष्पन्न होती है और जब ये तीनों ऋजुताएं निष्पन्न होती हैं तब हमारे मन की स्थिति, हमारे ध्यान की स्थिति निष्पन्न होती है और उस ऋजुता की स्थिति में ही यह फलित होता है कि ऋजु आत्मा की शुद्धि होती है और धर्म उसी में टिकता है । वह ऋजुता नहीं आती है, तब इस पद्य का अर्थ हमारे लिए व्यर्थ हो जाता है ।
प्रश्न : समाधान
प्रश्न - ज्वर में जैसे नाभि पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, वैसे अन्य आवेग की मुद्राओं में ध्यान को कहां केन्द्रित करना चाहिए ?
उत्तर - आवेग की स्थिति में श्वास पर ही ध्यान को केन्द्रित करना चाहिए । जब श्वास पर हमारा ध्यान केन्द्रित हो तो श्वास पर जैसे ही ध्यान केन्द्रित हुआ और आप समझिए कि आवेग को हमने विदाई दे दी । श्वास पर ध्यान जाते ही, श्वास शांत होने लग जाता है और श्वास के शांत होने का अर्थ है - आवेग की शांति । या उस समय श्वास को शांत करने के लिए हम नासाग्र पर ध्यान टिकाएं, नाक के अग्र भाग पर यानी नीचे । नाक के नीचे जो होंठ है, जहां से श्वास आता है और जाता है, मन को केन्द्रित करें। ऐसा करने पर श्वास अपने आप शांत होने लगता है और श्वास शांत होने के साथ-साथ आवेग भी अपने आप शांत होने
अमूल्य का मूल्यांकन : २५
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