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उपवास का विधान क्यों है ? क्या भूखा मरने के लिए है ? भूखा मरने का क्या अर्थ हो सकता है ? यह तो एक गौण बात है कि जो उपवास करेगा, वह नहीं खायेगा । भूखा रहेगा। किन्तु भूखा मरने के लिए उपवास नहीं, उससे क्या होता है ? आज का शरीरशास्त्री कहता है-भोजन बन्द कर दो, श्वास की गति शिथिल हो जायेगी। उपवास करने वालों के सहज ही श्वास की गति मन्द हो जाती है। कायोत्सर्ग किसलिए? यह सारी श्वास की प्रक्रिया है।
यह हमने भुला दिया कि जैन मुनि के लिए दिन में बीसों-तीसों बार कायोत्सर्ग करने का विधान है। बाहर जाये, फिर आये तो कायोत्सर्ग । भिक्षा के लिए जाये, फिर आये तो कायोत्सर्ग । प्रतिलेखन करे तो कायोत्सर्ग । प्रतिक्रमण करे तो कायोत्सर्ग । जहां भी हमारी हलन-चलन होती है, जहां भी हमारी प्रवृत्ति होती है, प्रवृत्ति के साथ-साथ कायोत्सर्ग होता है। किसी के साथ कलह हो गया तो कायोत्सर्ग। दुस्वप्न आ गया रात्रि में तो कायोत्सर्ग । हमारी प्रायश्चित्त की पचासों प्रवृत्तियां कायोत्सर्ग पर निर्भर थीं। प्रायश्चित्त श्वास के आधार पर चलता था। आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, पचीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, पचास श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, सौ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, पांच सौ-हजार श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, आदि-आदि।
यह सारा क्या था? क्या यह श्वास की पद्धति नहीं है ? पूरी की पूरी है। किन्तु जब कोई बात विस्मृति में चली जाती है, शब्दों से अतीत हो जाती है और केवल थोड़े से नियम हमारे सामने रह जाते हैं। उसे पकड़ने में हमें कठिनाई आती है और वैसी ही कठिनाई शायद आज हमारे सामने हो रही है। ___सामायिक क्या है ? साम्य क्या है ? जैसे ही मन में समता का भाव आया, समता का विचार आया और हमारे श्वास का सन्तुलन स्थापित हो जायेगा। जो श्वास की विसंगति है, श्वास का वैषम्य है, समाप्त हो जायेगा। सामायिक, उपवास, कायोत्सर्ग, ध्यान-सारी की सारी पद्धतियां श्वास-नियमन की पद्धतियां हैं। ध्यान का कितना बड़ा संबंध है ? ध्यान जहां गया, वहां प्राण चला जायेगा। मुनि को 'युक्त' कहा गया है। युक्त का मतलब क्या ? बुद्धि के साथ मन, मन के साथ प्राण और प्राण के साथ शरीर। ये जब साथ-साथ चलते हैं, इनमें कोई विसंगति, असामंजस्य और असन्तुलन नहीं होता, वह व्यक्ति 'युक्त' हो जाता है । जिसमें यह नहीं होता, वह अयुक्त हो जाता है।
बहुत लम्बा विषय है। एक बात कहकर समाप्त करूं । 'सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई'-शुद्धि किसे प्राप्त होती है ? जो ऋजु होता है । ऋजु का अर्थ होता है सरल । किन्तु यह भावना अपर्याप्त है। इसे व्यापक संदर्भ में समझना चाहिए। ऋजु के शुद्धि होती है और जो ऋजु होता है, उस आत्मा में धर्म टिकता है। ऋजु क्या है ? जिसकी काया ऋजु है, जिसकी भाषा ऋजु है और
२४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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