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________________ स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं तो शायद महावीर को निकटता से समझने का, उनके अनुभवों का साक्षात् करने का हमें अनायास अवसर प्राप्त हो जाता है। महावीर जब ध्यान करते थे तो वहां दो बातें आती हैं-एगपोग्गलनिविट्ठदिट्ठी, अणिमिसनयणे-वे एक पुद्गल पर दृष्टि टिकाते थे। आंखों में इतनी उष्मा बढ़ जाती थी कि बच्चे डर जाते थे और चिल्लाकर भागते थे, जैसाकि आचारांग सूत्र में बतलाया गया है---'हंता ! हंता ! बहबे कंदिसु'-यह क्या ? यह क्या ? चिल्ला-चिल्लाकर बच्चे भाग जाते। यह क्यों ? इसके फलित क्या हैं ? यह भाषा में नहीं जाना जा सकता। अनुभव की बात को उस स्थिति में पहुंचकर ही समझ सकते हैं। भाषा में तो इतना आ गया कि एक पुद्गल पर दृष्टि टिकाना और आंखों को अपलक रखना। इतना मात्र है । पर आखिर तो इस स्थिति में पहुंचकर ही अनुभव किया जा सकता है। ___ एक बंगाली व्यक्ति था, प्रेतात्माओं को बुलानेवाला। काफ़ी प्रेतात्माओं को बुलाता था। कुछ दिनों के बाद मर गया। मरने के बाद उसके साथी ने उसकी प्रेतात्मा को बुलाया। वह उपस्थित हुआ। उन्होंने पूछा, 'तुम परलोकवासी हो गये, अब अपने अनुभव बताओ।' वह बोला, 'जो मरने के बाद मैंने अनुभव पाया है, वह जीते-जी तुम नहीं पा सकते।' जो अनुभव महावीर की स्थिति में जाने के बाद पाए जा सकते हैं, उस स्थिति में गये बिना वे अनुभव नहीं पाए जा सकते और उन बातों को नहीं समझा जा सकता। किन्तु उन्हें समझने के लिए थोड़ी-सी बातें मैं आपके सामने प्रस्तुत करूं। ____कोई भी ध्यान करने वाला यह देख सकता है कि जैसे ही हम एक बिन्दु पर अपनी आंखों को अपलक रखेंगे, त्राटक करेंगे, अनिमेष दृष्टि रखेंगे और नेत्रों को झपकाए बिना कहीं भी टिकाएंगे तो टिकाते ही श्वास मन्द हो जाएगा । श्वास शान्त हो जाएगा । एक मिनट में ही आप देखेंगे कि आपकी श्वास बिलकुल खोयीखोयी जा रही है और बिलकुल अन्दर घुसी जा रही है, ऐसा अनुभव होने लगेगा। दूसरा अनुभव होगा कि मन शब्दातीत हो रहा है । मन विकल्पातीत हो रहा है । हमारे शब्द समाप्त होते जा रहे हैं। त्राटक करने के दो परिणाम जल्दी हमारे अनुभव में आ सकते हैं। शब्दातीत और विकल्पातीत चित्त की स्थिति का निर्माण और श्वास की समाप्ति, श्वास का शान्त हो जाना। ये दो स्थितियां प्राप्त होंगी। ___ आप कैसे कहते हैं कि जैन साधना पद्धति में भगवान् महावीर ने श्वास के बारे में कुछ नहीं कहा ? कहा कैसे नहीं ? भाषा नहीं समझ में आती हमारे। इसलिए हम कह सकते हैं। हमें भाषा को नहीं समझना है, महावीर की अनुभूतियों को समझना है, उनकी साधना-पद्धति के रहस्य को समझना है। अमूल्य का मूल्यांकन : २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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