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________________ उल्टा चलिये । इस प्रकार की मुद्रा करिये । करते रहिये । मुद्रा जिस प्रकार सधी, उस प्रकार का भाव भी उतरने लगेगा। मुद्रा से आवेग का अवतरण होता है और आवेग मुद्रा का निर्माण करता है-यह इतना अटूट सम्बन्ध है, इतना गहरा और धनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक के होने पर दूसरी स्थिति घटित हो जाती ___ यह मुद्रा और मानस का सम्बन्ध यदि हम ठीक मे समझ लें तो आवेग की मुद्रा में नहीं जाएंगे। हमारा श्वास शान्त रहेगा। जब हमारा श्वास शान्त रहेगा तब आवेग आ नहीं सकता। गुस्सा आ भी गया तो तत्काल आधा मिनट के लिए नाक को बन्द कर लीजिए, गुस्सा शान्त हो जायेगा। कोई भी बड़ा आवेश आया, क्षण भर के लिए कुंभक कर लीजिये, आवेश उतर जायेगा। सुदर्शन जा रहा था। अर्जुनमालाकार सामने आया। देखा-सामने मौत आ रही है। तत्काल कायोत्सर्ग में खड़ा हो गया। उपसर्ग के आने पर जो कायोत्सर्ग का विधान मिलता है उसका रहस्य क्या है ? यही तो है कि कायोत्सर्ग करने पर सामने आनेवाली जो विभीषिकाएं हैं, सामने आने वाली जो घटनाएं हैं और जो घटनाएं हमारे मानस को विचलित कर सकती हैं, जो हमें संत्रस्त और मार्गच्युत कर सकती हैं, कायोत्सर्ग की मुद्रा में आने पर हमारा आवेग शान्त हो जाता है और शान्त स्थिति में आनेवाली प्रत्येक घटना का सामना करने के लिए हमारी क्षमता पैदा हो जाती है और उसे हम बड़े शान्तभाव से सहन कर सकते हैं। उसे सहन करने के लिए स्थान-स्थान पर कायोत्सर्ग की प्रतिक्रिया बतलायी है। और इसे हमारे आचार्यों ने अभिभव कायोत्सर्ग कहा है। अभिभव कायोत्सर्ग आनेवाली कठिनाइयों को झेलने की तैयारी है। कायोत्सर्ग कर लेने पर श्वास की स्थिति शान्त हो जाती है और शान्त स्थिति में आवेग की स्थिति कभी पैदा हो नहीं सकती। और उसे ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। हमारा श्वास कई प्रकार का होता है। एक श्वास तो साधारण होता है। प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सोलह से उन्नीस तक श्वास आते हैं। यह हमारा सामान्य श्वास है। दूसरा है पूर्ण श्वास यानी गहरा श्वास । एक होता है क्षुब्ध श्वास। एक होता है शान्त श्वास । एक होता है सूक्ष्म श्वास और एक होता है निरुद्ध श्वास । इस प्रकार श्वास के छह प्रकार बन जाते हैं : १. सामान्य श्वास २. पूर्ण श्वास ३. क्षुब्ध श्वास ४. शान्त श्वास ५. सूक्ष्म श्वास ६. निरुद्ध श्वास २० : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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