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आवेगों ने किसी साधक से पूछा-'हम तुम्हारे बहुत परिचित साथी हैं । क्या कभी तुम हमें याद करते हो?" साधक ने उत्तर दिया-"जब श्वास को भूल जाता हूं तब तुम्हें याद करता हूं। जब श्वास की स्मृति रहती है, तुम्हें याद नहीं करता।"
यह कैसे ? आप लोगों के मन में भी प्रश्न हो सकता है। किन्तु आप सही समझिए, जब श्वास हमारा शान्त होता है, हमें कोई आवेग आ नहीं सकता। श्वास शान्त, आवेग शान्त । श्वास क्षुब्ध, आवेग का अवतरण । यह इतना निश्चित नियम है कि आप श्वास को शान्त रखकर क्रोध करना चाहें तो कभी नहीं कर सकते । क्रोध आने के पहले, आपके श्वास को उत्तेजित और क्षुब्ध होना होगा, तभी क्रोध आ सकता है। श्वास के क्षुब्ध हुए बिना क्रोध आ ही नहीं सकता। कितना निश्चित नियम है। __योग का एक सिद्धान्त है-मुद्रा और मानस । मुद्रा और मानस यानी मुद्रा के अनुकूल आवेग आयेगा या आवेग की मुद्रा होने पर, आवेग के आने पर उसके अनुकूल मुद्रा बन जायेगी। दोनों में निश्चित सम्बन्ध है। किसी आदमी ने हत्या पद्मासन में बैठकर की हो, शान्त रस में बैठकर की हो, शायद दुनिया में ऐसी कोई भी घटना नहीं मिलेगी। हो नहीं सकती। जिसे हिंसा करनी है, उसे क्रोध-मुद्रा का निर्माण करना होगा। उसकी आंखें लहूलुहान जैसी हो जायेंगी। उसकी आकृति पर एक बीभत्सता का दृश्य उपस्थित हो जायेगा, हाथ कांपने लग जाएंगे, भुजाएं फड़कने लग जाएंगी। तब उसमें किसी को मारने की, आवेश की स्थिति उत्पन्न होती है और वह क्षमता पैदा होती है। कोई भी शस्त्र का प्रयोग करने वाला, अपने आपको क्षुब्ध किये बिना और उस प्रकार की मुद्रा का निर्माण किये बिना वैसा काम कर नहीं सकता। ___ मानस और मुद्रा, इन दोनों का बहुत गहरा सम्बन्ध है । जब बृहद्कल्प सूत्र में कुछ नियम पढ़े-साध्वी को सीधा नहीं सोना, साधू को औंधा नहीं सोना । पर यह क्यों? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किन्तु जब से यह मुद्रा और मानस का सिद्धान्त समझ में आया, तब से यह समझ में आ गया कि बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से ये व्यवस्थाएं की गयी हैं। काम की मुद्रा, चिन्ता की मुद्रा, क्रोध की मद्रा-ये जो सारी मद्राएं हैं, इनका निर्माण होने पर काम, क्रोध, चिन्ता आदि के आवेग सहज ही उनमें उतर जाते हैं।
जो आदमी चिन्तित है, उसे कोई सिखाने नहीं आता कि तुम इस प्रकार करो। मन में चिन्ता आयी कि हाथ सिर पर चला जाता है। सिर को खुजलाने लगेगा, दृष्टि ज़मीन पर गड़ जायेगी या आकाश की ओर उठ जायेगी। यह मुद्रा का निर्माण कौन करता है ? हमारे जो अन्तरंग के आवेग हैं, जो भाव हैं, वे स्वयं इस प्रकार की मुद्रा का निर्माण करते हैं।
अमूल्य का मूल्यांकन : १६
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