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________________ मैं समझता हूं सब लोग इस बात को स्वीकार करेंगे कि रोटी और पानी की अपेक्षा श्वास का मूल्य अधिक है। किन्तु जो मूल्य हमें मान्य है, वह भी बहुत छोटा है। बहुत छोटा मूल्य है। यह श्वास का शारीरिक मूल्य है। भौतिक मूल्य है। श्वास का मूल्य इससे बहुत ज्यादा बड़ा है। पहला है श्वास का शारीरिक मूल्य और दूसरा है श्वास का आध्यात्मिक मूल्य । श्वास का बहुत अधिक आध्यात्मिक मूल्य है। और साधना के क्षेत्र में इतना बड़ा उपयोगी तत्त्व, शायद मुझे लगता है कि, दूसरा कम है। बहुत कम। __मैं इस बात की ओर बहुत अधिक ध्यान देता रहा हूं कि श्वास पर अधिक से अधिक अभ्यास किया जाए और उसे जानने का, समझने का प्रयत्न किया जाए। जैसे-जैसे प्रयत्न किया, कुछ रहस्य खुलते जा रहे हैं। मुझे लगता है कि इसमें और ज्यादा रहस्य भरे पड़े हैं। जिस दिन श्वास के सारे रहस्य हमारे सामने उद्घाटित हो जायेंगे, शायद हम न जाने क्या बन जायें ? यह एक बहुत बड़ा विषय है। श्वास का शारीरिक मूल्य तो आप जानते हैं । शरीरशास्त्र की दृष्टि से श्वास न हो तो हमारी मांसपेशियां गति नहीं देतीं, हमारे शरीर में क्षमता उत्पन्न नहीं होती। हमारे दिमाग के तन्तु मृत हो जाते हैं। हमारे हृदय की धड़कन बन्द हो जाती है। आदमी मर जाता है । यह श्वास का शारीरिक मूल्य है। ____ श्वास का आध्यात्मिक मूल्य है-चेतना का ऊर्ध्वारोहण और अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति, प्रातिभ ज्ञान की प्राप्ति, अप्रमाद-सतत जागरण की अवस्था। ये श्वास के ज्ञान के बिना नहीं हो सकते। भगवान् महावीर ने कहा-एक क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत करो। बात बहुत अच्छी है कि प्रमाद एक क्षण के लिए भी न किया जाये, पर यह हो कैसे सकता है ? इसकी साधना क्या है ? इसका उपयोग क्या है ? इसका उपाय हैश्वास पर ध्यान को केन्द्रित करना। यह पद्धति बौद्धों में रही है। इसे 'आनापानसती' कहा जाता है। श्वास पर ध्यान को केन्द्रित करो और प्रति पल श्वास के साथ मन को जोड़ दो। मन अप्रमत्त रहेगा। मैं समझता हूं कि जैनों में भी यह पद्धति रही है। जो 'यथालन्दक मुनि' होते थे, वे क्षण-क्षण के लिए जागरूक रहते थे। एक क्षण भी उनमें प्रमत्तता नहीं आती थी। उनकी अप्रमत्त दशा का माध्यम था कायोत्सर्ग या श्वास पर ध्यान केन्द्रित करना । यह श्वास जागरण का बहुत सजग प्रहरी है। एक भक्त था और बहुत बड़ा पहुंचा हुआ था। राजा ने एक बार पूछा"भई ! कभी मुझे भी याद करते हो क्या?" वह बोला-"जब भगवान् को भूल जाता हूं तब आपको याद करता हूं। जब भगवान् की स्मृति रहती है, तब कभी आपको याद नहीं करता।" ___ मैं इसे रूपक की भाषा में कहूं तो क्रोध, अभिमान, दम्भ, लालच आदि-आदि १८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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