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________________ संन्यासी गम्भीर मुद्रा में सुनता रहा, सुनता रहा । कुछ क्षण बाद राजा मौन हो गया तो संन्यासी बोला-"राजन् ! तुमने मेरी प्रशंसा की, पर वास्तव में मुझे लगता है कि तुम्हारे त्याग के सामने शायद मेरा त्याग छोटा है। तुम बड़े त्यागी हो।" राजा अवाक् रह गया। सोचा-"यह कैसे ? मैं त्यागी कैसे हो सकता है ? इतने बड़े राज्य का, ऐश्वर्य का, वैभव का भोग कर रहा हूं और गुरुदेव कह रहे हैं कि तुम बड़े त्यागी हो। यह कैसे ?" राजा समझ नहीं पाया। उसने पूछा"गुरुदेव ! मैं कहां त्यागी हूं ? त्यागी तो आप हैं ?" संन्यासी बोला-"राजन्, मैंने जो कुछ छोड़ा है वह बहुत के लिए अल्प को छोड़ा है । मैं परमात्मा बनना चाहता हूं, परमात्मा का ऐश्वर्य पाना चाहता हूं। उसके लिए मैंने छोड़ा है। मैंने अल्प छोड़ा है और बहुत के लिए छोड़ा है। और तुम बहुत को छोड़कर अल्प में मुग्ध हो रहे हो। कहो, त्याग तुम्हारा बड़ा या मेरा बड़ा?" राजा नत हो गया। ___ सचमुच यह प्रश्न हमारे लिए भी उपस्थित होता है। और उन सबके लिए भी जो श्वास का मूल्य नहीं जानते। श्वास का मूल्य नहीं जानने वाला हर कोई व्यक्ति शायद बहुत को छोड़कर अल्प की उपासना कर रहा है। साधना के क्षेत्र में आता है और श्वास का मूल्यांकन नहीं करता, वह वास्तव में आत्मा का मूल्यांकन नहीं करता, परमात्मा का मूल्यांकन नहीं करता और वह बहुत के लिए शायद छोटे में, अल्प में, मुग्ध हो रहा है। आप सोचेंगे कि श्वास का इतना क्या महत्त्व है ? आखिर वह भौतिक वस्तु है। वह हमारे शरीर का एक हिस्सा है। उसका इतना मूल्य क्यों है ? तो मैंने सोचा कि इसी विषय पर कुछ बातें कहूं कि हमें मूल्य का नहीं, अमूल्य का मूल्यांकन करना है। मेरे विषय का शीर्षक ही यही होगा-'अमूल्य का मूल्यांकन'। श्वास वास्तव में हमारे लिए अमूल्य है। उसका मूल्यांकन हमें करना है। रोटी का हमारे जीवन में मूल्य है। रोटी के बिना कोई आदमी जी नहीं सकता। पानी का हमारे जीवन में मूल्य है। पानी के बिना कोई आदमी जी नहीं सकता । श्वास का हमारे जीवन में मूल्य है । श्वास के बिना कोई आदमी जी नहीं सकता। रोटी के बिना कुछ दिनों तक मनुष्य जी सकता है, हमने अपनी आंखों से देखा है। पानी के बिना भी कुछ दिनों तक जी सकता है, यह भी देखा है। किन्त श्वास के बिना कुछ महीनों की बात नहीं, कुछ दिनों की बात नहीं, कुछ घंटों की बात नहीं, कुछ मिनटों तक भी नहीं जीया जा सकता। अगर पांच मिनट श्वास न लेना हो तो न जाने क्या बीते ? तो मूल्य किसका ज़्यादा है ? रोटी का अधिक, पानी का अधिक या श्वास का अधिक ? अमूल्य का मूल्यांकन : १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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