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________________ कि हमारी साधना रूढ़ है ? उत्तर-विवेक कितनी बार जागता है, वह कोई एक बिन्दु में पूरा नहीं हो सकता। नोखा में जहां से प्रवेश किया वहां भी नोखा है। जहां बैठे हैं, यह भी नोखा है और लगभग एक मील तक चले जाएंगे तो भी नोखा है। पर यह तो बहुत छोटा है । कलकत्ता के पहले छोर और अंतिम छोर में कम-से-कम दस मील की दूरी होगी। उस दस मील के अन्दर सब जगह कलकत्ता ही माना जायेगा। इसी प्रकार विवेक सब जगह है। जिस बिन्दु से चले हैं वह भी विवेक है और जिस बिन्दु तक पहुंचेंगे तब तक विवेक होगा। हमें यह मान लेना चाहिए कि जिस विवेक के बिन्दु से साधना पर चले थे, वह भी विवेक था और श्वास के ऊपर का जो विवेक मिलेगा, वह भी विवेक है। अगर रूढ़ होते तो यह बात सोचते ही नहीं कि श्वास का विवेक हमें करना है। इसलिए रूढ़ तो नहीं है पर एक बात ज़रूर है कि पद्धतियां भिन्न होती हैं । साधना की पद्धति में संकल्प करना भी साधना का एक विवेक है। किसी व्यक्ति ने अगर यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि हमें संकल्प को मजबूत बनाना है तो फिर उसे शायद श्वास को पकड़ने की कोई जरूरत नहीं है। व्यक्ति का संकल्प दृढ़ होगा तो निश्चित ही श्वास की जो प्रक्रियाएं होती हैं, वे सारी की सारी सहज ही फलित हो जायेंगी। रोटी बनाने वाले को यह पता नहीं है कि गेहूं के आटे में क्या-क्या है ? खाने वाले को भी पता नहीं है। फिर भी जो रोटी खाता है, उसे अपने आप प्रोटीन मिल जायेगा तथा और भी जितने तत्त्व आटे में हैं सारे के सारे मिल जायेंगे । तो एक है होना और एक है जानना कि होगा। हम बहुत अनजाने में भी किसी सत्य को पकड़ लेते हैं तो वह अपने आप फलित हो जाता है । अगर संकल्प को इतना दृढ़ कर दें और जिस व्यक्ति का संकल्प इतना दृढ़ और मज़बूत हो गया, श्वास की सारी घटनाएं अपने आप ही उसमें हो जायेंगी। इसीलिए योग के आचार्यों ने बतलाया भी है कि श्वास, मन और बिन्दु (वीर्य)-इन तीनों में से एक को पकड़ने पर दो बातें अपने आप पकड़ में आ जाती हैं । जिस व्यक्ति ने श्वास को समझा और मन को पकड़ने का प्रयत्न नहीं किया, फिर भी मन की सारी घटनाएं अपने आप ही समझ में आ जायेंगी। किसी व्यक्ति ने मन को पकड़ा, श्वास को नहीं पकड़ा, मन को दृढ़ता के साथ संकल्प मिला तो श्वास की सारी स्थितियां अपने आप ही समझ में आ जायेंगी। पचासों रास्ते हैं एक गांव में जाने के लिए और पचासों दरवाज़े हैं एक मकान में प्रवेश पाने के लिए। किसी में से घुसो, आखिर धुसो । उसके अन्दर जाने का प्रयत्न करो। एक दरवाजे से भी घुसें तो भी हम सारे मकान में घूम सकते हैं, कोई रुकावट नहीं होगी। चाहे पूरब से आयें, चाहे पश्चिम से आयें और चाहे उत्तर या दक्षिण या किसी भी ओर से आयें, आखिर मकान के भीतर हमें घुसना है। चेतना का जागरण : १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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