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वह अखंड ज्योति है। अमिट ज्योति है। जो ज्योति एक बार प्रज्ज्वलित हो गयी, वह कभी नहीं बुझती। और चेतना की लौ तो कभी बुझती ही नहीं। जागरण है चेतना के ऊर्वारोहण का आदि-बिन्दु। हर मनुष्य के पास शक्ति के कोष होते हैं। शक्ति का संचय होता है। जिसे अपनी पारिभाषिक भाषा में कहते हैं लब्धि । वह तो होती है। प्रश्न यह नहीं होता शक्ति के प्राप्त करने का । प्रश्न होता है शक्ति के प्रयोग का। जिसे कहते हैं करणवीर्य यानी क्रियात्मक प्रयोग करना। शक्ति का प्रयोग करना । जिनमें जागरण हो जाता है, चेतना की ऊर्ध्वारोहण की ओर गति हो जाती है, उनकी शक्ति का प्रयोग ऊर्ध्व दिशा में होने लग जाता है और जिनका जागरण नहीं होता, नींद में होते हैं, उनकी शक्ति का प्रयोग अधोदिशा में होने लग जाता है। ये प्रयोग की दो दिशाएं हैं। शक्ति में कोई तारतम्य नहीं है और शक्ति का संचय तो दोनों में ही समान रूप से होता है।
प्रश्न-शक्तियों को जागृत क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-यह प्रश्न तो इसमें स्वयं समाहित है कि हमें चेतना को किस दिशा में ले जाना है। ऊपर की ओर ले जाना है या नीचे की ओर ले जाना है । हमारे चिन्तन को, हमारे विचार को, हमारे आचरण को किस दिशा में ले जाना है ? हमारे यहां दो शब्द रहे हैं.-एक स्वर्ग और एक नरक । तुम स्वर्ग का जीवन चाहते हो या नरक का जीवन चाहते हो ? ये दोनों प्रतीक रूप में चलते हैं। एक उस जीवन का, जहां जीवन समाप्त हो जाता है, उसका । एक हो सकता है जीवन की असफलता का या उसके नीचे जाने का । प्रश्न यह है कि हम क्या चाहते हैं ?. हर आदमी उन्नति चाहता है, जीवन में सफल होना चाहता है, सार्थक होना चाहता है, जीवन की धन्यता चाहता है और जीवन में महान होना चाहता है। यह महानता, जीवन की सफलता, जीवन की धन्यता और जीवन की सार्थकता एक ओर है और दूसरी ओर है ठीक इससे विपरीत या उल्टा-जीवन की असफलता, जीवन की व्यर्थता और जीवन की निरर्थकता। हर आदमी चुनाव यही करेगा कि वह जीवन की उच्चता में जाना चाहता है। हर आदमी सफल होना चाहता है, सार्थक होना चाहता है, धन्य होना चाहता है और महान् होना चाहता है। वह महानता, शक्ति-संचय और शक्ति-प्रयोग से प्राप्त होती है। ___ तो यह हमने स्पष्ट जान लिया कि शक्ति का-चेतना का ऊर्ध्वारोहण की ओर प्रयत्ल करने से, उस दिशा में चेतना को ले जाने से जीवन को महानता, सफलता आदि-आदि प्राप्त होते हैं और इसके विपरीत ले जाने से ठीक उल्टा प्राप्त होता है । इसलिए हमने यह चुनाव किया साधना का कि हम जीवन की सफलता के लिए, सार्थकता के लिए अपनी शक्ति को उस दिशा में ले जाना चाहते हैं, उस दिशा में जागृत करना चाहते हैं और उस दिशा में नियोजित करना चाहते हैं।
प्रश्न-यदि हमने श्वास का विवेक प्रारम्भ से नहीं किया तो क्या यह माने
१४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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