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________________ शक्ति का जागना एक बात है और शक्ति का दिशागामी होना एक बात है। शक्ति जागृत है किन्तु प्रश्न है दिशा का। किस दिशा में गति हो रही है, किस दिशा में जा रही है ? जो शैतान की शक्ति है यानी अहंकार और ममकार की जो शक्ति है, अहंकार और ममकार की जो जागरणा है, हम इस भाषा में तो कह सकते हैं कि वह शक्ति जाग उठी है। किन्तु वह मूर्छा का तीव्र प्रयत्न है । उसे जागति के शब्द से नहीं पुकारा जा सकता। मूर्छा भी शक्ति होती है । हम जानते हैं कि मनुष्य को जब सन्निपात होता है, उसकी शक्ति बढ़ जाती है । शक्ति तो है, किन्तु वह जागृत शक्ति नहीं है, जागरण की शक्ति नहीं है। वह मूर्छा की शक्ति है। यह मूर्छा की शक्ति जब प्रकट होती है तब मनुष्य नीचे की ओर जाता है या वह काम करता है जो जागरण के क्षणों में नहीं करता। प्रश्न-सेतु का निर्माण किसने किया? उत्तर-उसका निर्माण कौन करता है, यह बड़ा जटिल प्रश्न है। क्योंकि जहां निर्माण की बात आती है, पहली बात वहीं आ जाती है कि यह जीवन कब से हुआ ? आत्मा का अस्तित्व या चेतना कब से हुई ? किसने की? वह रोहक वाला प्रश्न आ जाता है कि अंडा पहले हुआ या मुर्गी पहले हुई ? दोनों में से कौन पहले हुआ? यह निर्माण की बात बीच में ही दबी रहे तो ठीक है। हमें समझना यही है कि अस्तित्व का कोई आदि-बिन्दु प्राप्त नहीं है। और जीवन का भी आदि-बिन्दु प्राप्त नहीं है । जब अस्तित्व और जीवन के आदि-बिन्दु प्राप्त नहीं हैं, तब निर्माण का भी आदि-बिन्दु प्राप्त नहीं है। यानी अस्तित्व और जीवन दोनों खुले हुए हैं। दोनों मिश्रित रूप में चले आ रहे हैं और उस मिश्रण में से ही यह निर्माण अपने-आप होता चला जा रहा है। इसलिए आदि-बिन्दु की जो खोज है, वह वास्तव में अव्यक्त ही मान ली जाये। ___ मकान कब बना पता नहीं। पचास वर्ष पहले के बने हुए मकान मिलते हैं। ऐसे मकान मिलते हैं जो हमारे जन्म से पहले ही बन गये। कई पीढ़ियों के बने हए मकान भी मिल जाते हैं। मकान की बनावट को, मकान की चिनाई को हमने नहीं देखा किन्तु मकान को आज हम देख रहे हैं। इसलिए मकान के बारे में हम आलोचना कर सकते हैं कि यह ठीक बना या ठीक नहीं बना। कैसे बना, उसकी समीक्षा करना हमारा काम है। क्योंकि उसे आज हम देख रहे हैं। निर्माण को नहीं देख रहे हैं। __ जो सेतु प्राप्त है, हम उस सेतु को देख रहे हैं। उस सेतु के बारे में निर्णय लेना हमारा काम है, किन्तु सेतु के निर्माण के बारे में हमें जानकारी नहीं है। कुछ करें तो विवेक कर सकते हैं कि सेतु के इधर जाना है या उधर जाना है। पुल बना हुआ है। हमने नहीं देखा कि नदी का पुल कब बना । पुल के इस पार जाना है या उस पार जाना है, यह निर्णय करना तो हमारा काम हो सकता है। किन्तु पुल के १२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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