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प्रश्न : समाधान प्रश्न-क्रियमाण हिंसा हिंसा नहीं होती। स्मृति की हिंसा हिंसा होतो है, यह कैसे ?
उत्तर-यह मैंने नहीं कहा कि क्रियमाण हिंसा, हिंसा नहीं होती। क्रियमाण हसा उतनी हिंसा नहीं होती, जितनी कि स्मृति की हिंसा होती है । वर्तमान की जो घटना है, वह हिंसा तो है ही। किन्तु वह हिंसा का मूल नहीं है । हिंसा का मूल है स्मृति । यदि मन में हिंसा का संस्कार न हो और हिंसा का संस्कार स्मृति के रूप में जागृत न हो तो वर्तमान की हिंसा कोई कर ही नहीं सकता। कोई भी आदमी वर्तमान में जो हिंसा कर रहा है, वह इसीलिए कर रहा है कि उसके मन में हिंसा का संस्कार है । और उस हिंसा के संस्कार की स्मृति जागृत हो रही है। इसलिए वर्तमान में हिंसा कर रहा है। इसलिए हिंसा का मूल दोष है, बड़ा दोष है-स्मृति, न कि वर्तमान की घटना। वह तो इसका एक परिणाम है। जहां निवारण का प्रश्न है, वहां हमारी चेतना का जैसे-जैसे ऊर्ध्वारोहण होगा, तो हिंसा अपने-आप समाप्त हो जायेगी। हिंसा छोड़ने से समाप्त नहीं होती, करने से समाप्त नहीं होती, चेतना का जागरण होता है तो अपने-आप समाप्त हो जाती है। क्योंकि उससे हिंसा का संस्कार समाप्त होता है और जब संस्कार समाप्त हो जाता है तो स्मृति और घटनाएं, ये दोनों नहीं होती।
प्रश्न-ऊर्वारोहण करना चाहिए या चेतना का जागरण करना चाहिए? शैतान के चेतना तो होती है परन्तु उसकी चेतना अधोगामी होती है। ऊपर के व्यक्ति की चेतना ऊर्ध्वगामी होती है परन्तु जो मध्यवर्ती व्यक्ति हैं, उनकी चेतना का तो इतना विकास ही नहीं होता तो उनकी चेतना का ऊर्ध्वारोहण करना चाहिए या जागरण ?
उत्तर-बात ठीक है। चेतना का जागरण मध्यबिन्दु है। इधर है नींद और उधर है ऊर्वारोहण । नीचे जाना, ऊपर जाना। बीच का बिन्दु है जागरण । यानी जागरण के बिन्दु पर जो चेतना चली जाती है, उसका ऊर्ध्वारोहण शुरू हो जाता है और जो जागरण के बिन्दु से इधर रहती है, उसका नीचे गमन होता चला जाता है। मैंने कहा था कि सेतु पर खड़ा होकर आदमी विवेक करता है । वह विवेक है जागरण और जब वह जाग जाता है उसके बाद चेतना का मतलब ही है कि ऊर्ध्वारोहण शुरू हो गया। इधर प्रस्थान हमारा हो गया, उधर अभियान हमारा शुरू हो गया।
प्रश्न-जिसकी शक्ति जागृत है, उसका ऊर्ध्वारोहण आसानी से किया जा सकता है। पर ऊर्वारोहण क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-सुप्त शक्ति कोई काम नहीं करती, बिलकुल निष्क्रिय होती है । अब
चेतना का जागरण : ११
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