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बोलता है सेतु । खाता है सेतु । सेतु खाता है, सेतु बोलता है और सेतु सोचता है । हम उस सेतु पर खड़े हैं। अब हमें यह निर्णय करना है कि किधर जाएं ? इधर जाएं या उधर जाएं ? अपने अस्तित्व की ओर जाएं या जीवन की ओर जाएं ?
चुनाव हमें करना है। इस चुनाव का ही नाम है साधना का विचार करना । इस चुनाव का जो बिन्दु है, वह साधना का बिन्दु है। आदमी चाहे तो इधर जा पकता है और चाहे तो उधर जा सकता है । अस्तित्व की ओर गति होगी, वह एक प्रकार की गति होगी । और जीवन की ओर गति होगी, वह एक प्रकार की ति होगी। ये दोनों तट हैं और इन दोनों तटों के बीच में एक सेतु है । इस सेतु का हमें निर्णय करना है । और यह हमारा साधना का मुख्य विषय होगा । साधना का मुख्य विषय है सेतु पर खड़ा होकर देखना । दोनों ओर झांकना । दोनों के परिणामों को देखना । दोनों के परिणामों की समालोचना करना और दोनों के परिणामों पर विचार करना तथा विचार के बाद अपना निर्णय करना कि किधर जाना मेरे हित में है और किधर जाना मेरे हित में नहीं है ।
यही विचार भगवान महावीर ने इतनी स्पष्टता से दिया था कि जिसे हम चाहे साधना पद्धति कहें, चाहे योग कहें और चाहे किसी दूसरे नाम से पुकारें । किन्तु वह विचार सचमुच अपने अस्तित्व की ओर जाने का विचार है । और अस्तित्व की ओर जाने का जितना स्पष्ट विचार, जितनी स्पष्ट गति और प्रखर गति भगवान महावीर ने दी बहुत कम लोगों ने दी होगी ।
चेतना के जागरण का पहला बिन्दु क्या है ? पहला बिन्दु है - विवेक । सूत्रों में बहुत बार आया है - विवेक प्रतिमा, व्युत्सर्ग प्रतिमा। हम आज नहीं करते हैं विवेक प्रतिमा । मुनि के लिए बहुत आवश्यक था कि धर्म जागरिका के समय, पूर्व रात्रि और अपर रात्रि में, वह विवेक प्रतिमा का अभ्यास करे, विवेक प्रतिमा स्वीकार करे, उसका अनुशीलन करे ।
यह विवेक प्रतिमा क्या है ? कहां से हमें विवेक करना है ? दो भिन्न वस्तुओं का संगम हो रहा है एक माध्यम के द्वारा। इधर प्राण और जीवन की शक्ति तथा ऊर्जा है और उधर अस्तित्व की शक्ति, आत्मा की शक्ति है । अस्तित्व और प्राण- इन दोनों का संगम हो रहा है, मिश्रण हो रहा है और हमारी समझ में एकता हो रही है । हमारी अनुभूति ऐसी हो रही है कि अस्तित्व को हम प्राण की दृष्टि से देखते हैं और प्राण को अस्तित्व के साथ देखते हैं । इन दोनों में विवेक करना, विभेद करना, पृथक्त्व का बोध करना, भेदज्ञान करना - यह है हमारा विवेक |
विवेक हमारी साधना का पहला बिन्दु है और विवेक के बाद हमें गति को मोड़ देना है । उस मोड़ पर जो-जो मोड़ प्राप्त होंगे, वे क्रमशः आपके सामने स्पष्ट होते चले जाएंगे ।
१० : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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