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________________ अनुभव करते हैं, हल्कैपन का अनुभव करते हैं। ___हल्का बनने की यह प्रक्रिया भगवान महावीर ने वर्तमान क्रिया के माध्यम से दी है। हमें हल्का बनना है, शरीर को हल्का करना है। कैसे करना है ? इसमें शायद आज मैं नहीं जा सकंगा। क्योंकि बहुत लम्बा विषय है। पूरी की पूरी प्रक्रिया, कायोत्सर्ग की पद्धति शरीर को हल्का करने में आ जाती है। मन को हल्का करना, कैसे करना ? इस विषय में भी आज नहीं कह सकूँगा। क्योंकि मन को हल्का करने की पद्धति में, सबसे पहले हमें मन को समझना होगा। मन क्या है ? उसका अस्तित्व क्या है ? मन की क्रिया क्या है ? मन के बारे में हमारी जो धारणाएं हैं, वे कितनी भ्रान्त हैं और कितनी सही हैं, यह पूरा एक विषय बन जाता है। इसलिए आज मैं इनके विस्तार में नहीं जाऊंगा। तीसरी बात है श्वास को हल्का करना। जो व्यक्ति श्वास के बारे में नहीं जानता, वह साधना के बारे में नहीं जान सकता। वर्णमाला का पहला अक्षर है 'अ' । जो बच्चा 'अ' को नहीं जानता, वह पंडित तो क्या हो सकता है, साक्षर भी नहीं हो सकता। सबसे पहले उसे 'अ' को समझना ज़रूरी होता है। जो व्यक्ति श्वास को नहीं जानता वह क्या साधना कर सकता है ? कुछ भी नहीं कर सकता। क्योंकि श्वास का हमारे जीवन से इतना निकट का सम्बन्ध है कि उसे समझे बिना जीवन को नहीं समझा जा सकता। हमारे जीवन में दो स्थितियां हैं-एक हमारा अस्तित्व यानी आत्मा और एक हमारा जीवन । हम अस्तित्व को नहीं जान पाते और शेष सारे जीवन को जान पाते हैं। हम ऐसे सेतु पर खड़े हैं । हम केवल पुल को जानते हैं। इस तट को भी नहीं पकड़ पाते, उस तट को भी नहीं पकड़ पाते, बीच में जो सेतु बना हुआ है, उसे पकड़ पाते हैं। हमारे जीवन के सेतु क्या हैं ? आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन-ये छह हमारे सेतु हैं। क्या आत्मा आहार करती है ? नहीं करती। आप सब जानते हैं कि आत्मा आहार नहीं करती। तो क्या शरीर आहार करता है ? शरीर भी आहार नहीं करता। किन्तु जब आत्मा और शरीर के बीच में एक सेतु होता है तो आहार होता है। कौन बोलता है ? आत्मा बोलती है क्या ? आत्मा को बोलने की ज़रूरत नहीं । आत्मा की कोई भाषा ही नहीं है। आत्मा उस स्थिति में है, जहां से सारे स्वर लौट आते हैं-सब्वे सरा नियट्टति । जहां शब्द की कोई पहुंच नहीं है। जहां कोई तर्क नहीं है-तक्का तत्थ न विज्जइ। जहां कोई मनन और चिन्तन नहीं है-मई तत्थ न गाहिया। जहां कोई स्मृति नहीं है। जहां कोई कल्पना नहीं है। उस बिन्दु का नाम है-आत्मा या अस्तित्व । कौन बोलता है ? शरीर बोलता है क्या ? शरीर बेचारा जड़ है। वह क्या बोलेगा? वह नहीं बोल सकता। आत्मा नहीं बोलती, शरीर नहीं बोलता, चेतना का जागरण : ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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