________________
हमारे कार्य की शक्ति को भी शायद चुरा लेती है। तो यह हिंसा की स्मृति का भार भी बहुत कठिन होता है।
इसी प्रकार जटिल होता है कल्पना का भार । कल्पना में हम इतने खो जाते हैं, इतने भारी बन जाते हैं कि शायद हमारी गति अवरुद्ध हो जाती है। तो आप सही दृष्टि से देखें कि स्मृति का भार और कल्पना का भार हमारे लिए असह्य भार होता है। शायद आपको अनुभव हो कि जितना भार कल्पना और स्मृति का होता है, वास्तविकता का नहीं होता। ___ लोग कहते हैं कि अमुक जंगल में बहुत बाघ हैं, शेर हैं, चीते हैं और दिन में दहाड़ते रहते हैं। बड़ा भयंकर जंगल है । कल्पना में काफ़ी भयावह है। किन्तु जब वन में से गुजरते हैं, उस समय उतना भय नहीं होता। भय की छाती को हम चीरते हैं, उस समय उतना भय नहीं, जितना भय हमारी स्मृति में होता है। यह स्मृति और कल्पना का जो भार है, उस भार को पार करना बहुत कठिन बात है। स्मृति और कल्पना, ये हमारे अन्तर्जगत की घटनाएं हैं और वस्तु परिस्थिति का परिवेश या परिस्थिति का सामना बाहरी जगत् की घटनाएं हैं। बाहरी जगत् की घटनाएं हमारे मानस पर उतना प्रभाव नहीं डालतीं, जितना प्रभाव हमारे अन्तर्जगत का, हमारी कल्पना और हमारी स्मृति का, हमारे मन पर और हमारी कार्यक्षमता पर होता है।
यह समझना हमारे लिए बहुत जरूरी है कि कल्पना का भार न ढोना और स्मति का भार न ढोना। हिंसा, असत्य आदि जितने भी आचरण हैं, जितने भी दोष हैं, वे सारे के सारे दोष, यदि स्मृति और कल्पना को पाट दें तो शायद वर्तमान में प्राप्त ही नहीं हो सकते । वर्तमान का क्षण बहुत शुद्ध होता है। वर्तमान का पवित्र पानी, वर्तमान की गंगा का निर्मल जल अतीत के गंदले और भविष्य के गंदले से गंदला हो जाता है, मलिन हो जाता है और पानी की स्वच्छता चली जाती है। और हम उन दोनों से कटकर, दोनों से पृथक् हो और केवल वर्तमान में रहना सीख लें तो जीवनमुक्त की स्थिति प्राप्त हो सकती है ।
आचार्य शंकर ने जो जीवन-मुक्त की परिभाषा लिखी है, उसमें यही तो बताया है
अतीताननुसन्धान, भविष्यदविचारणम्।
औदासिन्यमपि प्राप्ते, जीवनमुक्तस्य लक्षणम् ॥ यह जीवन-मुक्ति क्या है ? जहां अतीत का अनुसन्धान नहीं है और भविष्य की विचारणा नहीं है । भविष्य की कल्पना और योजनाएं नहीं हैं, वह है जीवनमुक्ति । किन्तु भविष्य की कल्पना और अतीत की स्मृति या अनुसन्धान को छोड़कर हम यदि देखते रहते हैं वर्तमान के परिवेक्षण में, तब हम मुक्ति का
८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org