________________
१२
कर्म का बन्ध
• कर्मों का आकर्षण होता है-चंचलता के द्वारा। • कर्मों का टिकाव होता है-कषाय के द्वारा। • साधना के दो आधार-बिंदु हैं-चंचलता को रोकना, कषाय
को क्षीण करना। • मनोविज्ञान के अनुसार मन के तीन विभाग
• अदस् (Id) मन। • अहं (Ego) मन।
• अधिशास्ता (Super Ego) मन । • प्रतिपक्ष-भावना द्वारा संस्कार-विशोधन ।
मन दो प्रकार का है-चेतन मन और अवचेतन मन। चेतन मन जो कुछ करता है वह सब वर्तमान का ही नहीं होता किंतु उसमें अवचेतन मन का हिस्सा होता है। उसका प्रभाव होता है। यह स्वीकृति उपलब्ध तथ्यों की स्वीकृति है। यदि सूक्ष्म में जाएं तो कर्मशास्त्र की वह स्वीकृति भी प्राप्त हो सकती है कि मनुष्य जो काम करता है वह केवल वर्तमान परिवेश, वर्तमान परिस्थिति से प्रभावित होकर ही नहीं करता, प्रभाव का जो हेतु है वह बहुत सूक्ष्म में और बहुत दूर तक चला जाता है। वह हेतु है कर्म-शरीर या पूर्व-अजित कर्म-समूह। उससे प्रभावित होकर ही मनुष्य काम करता है। दबी हुई इच्छाएं, दबी हुई आकांक्षाएं अवचेतन मन में चली जाती हैं और जब वे जागृत होती हैं तो चेतन मन प्रभावित होकर काम करने लग जाता है। इस मनोविज्ञान की भाषा को हम कर्म-शास्त्रीय भाषा में इस
कर्म का बन्ध : १३३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org