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________________ कार बदल दें कि पूर्व-अजित कर्म जब उदय में आते हैं, अपना फल देना शुरू करते हैं तब स्थूल मन उनसे प्रभावित होता है और वह उनके अनुसार ही व्यवहार और आचरण करने लग जाता है । दो काल हैं। एक क्रिया का काल, प्रवृत्ति का काल और दूसरा कर्म-बंध का काल । जब कोई प्रवृत्ति होती है, उसी क्षण कर्म का बंध हो जाता है। प्रवृत्ति का फल मिल जाता है। प्रवृत्ति का फल है कर्मों का अर्जन। वह तत्काल प्राप्त हो जाता है। क्रिया के साथ-साथ फल होता है। क्योंकि प्रत्येक क्रिया परिणाम को साथ लिये चलती है। परिणाम पीछे नहीं होता, तत्काल होता है। क्रिया और परिणाम में इतना अंतराल नहीं हो सकता कि आज हम क्रिया करें और उसका परिणाम सौ वर्ष बाद या हजार वर्ष बाद हो । एक आदमी धन कमाने की प्रवृत्ति करता है। उसका परिणाम-धन की प्राप्ति या अप्राप्ति-तत्काल हो जाता है। धन का अर्जन हो गया, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि उसका पूरा उपभोग भी तत्काल हो जाता है। परिणाम तत्काल मिल जाता है किंतु परिणाम का उपभोग लंबे समय तक होता रहता है। अर्जन उसी क्षण होता है, उपभोग होता रहता है। कर्म का बंध, कर्म परमाणुओं का अर्जन क्रिया का परिणाम है। वह अर्जन तत्काल हो जाता है। यह कभी नहीं होता कि क्रिया अभी हो रही है और कर्म का बंध कभी बाद में होगा। ऐसा कभी नहीं हो सकता। कर्म का बंध तत्काल हो जाता है। उसी क्षण में हो जाता है। किंतु जो अजित हो गया, जो संगृहीत हो गया, वह कब तक साथ रहेगा-इसका एक स्वतंत्र नियम है। यह नहीं होता कि जिस क्षण में किया, उसी क्षण में वह आया और अपना फल देकर चला गया। ऐसा नहीं होता। अर्जन का काल क्षणभर का है और उपभोग का काल बहुत लंबा है। प्राणी दीर्घकाल तक अजित कर्मों का उपभोग करता रहता है। प्राणी ने जो अजित किया, जिन कर्म-परमाणुओं का संचय किया, वे कर्म-परमाणु जिस क्षण में संचित होते हैं उसी क्षण में फल देने में समर्थ नहीं होते। प्रवृत्ति या आस्रव का मुख्य फल होता है कर्मों का अर्जन । वह प्रवृत्ति-काल में ही हो जाता है। किंतु जो अजित कर्म-पुद्गल हैं वे कब सक्रिय होंगे, कब तक सक्रिय रहेंगे, इसका नियम अर्जन के नियम से भिन्न होता है। तत्काल सक्रियता नहीं होती। आज बच्चा जन्मा। वह कानून की दृष्टि से संपत्ति का अधिकारी तो हो गया किंतु उसे पूरा अधिकार तब प्राप्त होगा जब वह नाबालिग अवस्था को पार कर जायेगा, सवयस्क बन जायेगा। जब तक वह सवयस्क नहीं हो जाता तब तक उस संपत्ति का संरक्षण कोई गाजियन करेगा। बच्चे को कार्यकारी स्वामित्व प्राप्त नहीं होगा। उसे जन्मजात स्वामित्व प्राप्त है, किंतु कार्यकारी स्वामित्व वयस्क होने पर ही मिलेगा। ठीक यही नियम कर्म-जगत् में लागू होता है। कर्म का जो बंध हआ है, कर्म १३४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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