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________________ १ कर्म की रासायनिक प्रक्रिया (२) • कर्म-फल का दाता कौन ? • क्या कोई नियन्ता है ? • प्रवृत्ति के चार कोण-शमन, विलयन, मार्गान्तरीकरण और उदात्तीकरण। • साधना का मार्ग है-उदात्तीकरण या मार्गान्तरीकरण। हमारे व्यक्तित्व के दो पहलू हैं। एक है आंतरिक चेतना और दूसरा है बाहरी चेतना। एक है सूक्ष्म और दूसरा है स्थूल । एक है अंतर्वत्ति और दूसरा है बहिर्वृत्ति । प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व इन दो भागों में विभक्त है। मनुष्य बाहरी जगत् में जो कुछ भी करता है, उससे उसका अन्तःकरण प्रभावित होता है, सूक्ष्म जगत् प्रभावित होता है । और सूक्ष्म जगत् में जो घटनाएं घटित होती हैं उनसे उनका स्थूल जगत् प्रभावित होता है, बाहरी पर्यावरण प्रभावित होता है। हम एक अंगुली भी हिलाते हैं, यह स्थूल जगत की घटना है, किंतु इससे हमारा सूक्ष्म जगत भी आंदोलित होता है। सूक्ष्म जगत में जो कुछ परिवर्तन होता है, उसका प्रतिबिम्ब या प्रभाव स्थूल जगत में पड़ता है। वह हमारे बाहरी वातावरण में या शरीर के परिवेश में आ जाता है। इसीलिए व्यक्तित्व की व्याख्या के लिए दोनों पहलुओं को समझना बहुत ज़रूरी है। प्राणी जिन कर्म परमाणुओं को स्वीकार करता है, ग्रहण करता है और अपने साथ संबद्ध करता है, वे कर्म परमाणु व्यवस्थित हो जाते हैं। स्वीकरण के समय उनकी एक व्यवस्था होती है। पहले उनमें कोई व्यवस्था नहीं होती। जब तक १२२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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