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कि कौन-सी चीज़ कहां, कैसे किस स्थिति में होती है। वह व्यावहारिक ज्ञान को भूल गया। - राजा की मुट्ठी में मक्खी थी। मक्खी के सूंड भी होती है, चार पैर भी होते हैं, और काला रंग भी होता है। किंतु वह मक्खी को भूल गया। उसने हाथी को पकड़ लिया। सूड आदि की दृष्टि से दोनों समान हैं, किंतु मुट्ठी में समाने की दृष्टि से दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। मक्खी मुट्ठी में समा सकती है। हाथी मुट्ठी में नहीं समा सकता। ऐसी भूलें होती हैं।
जहां विकीर्णों की वैज्ञानिकता का प्रश्न है, जहां विकीर्णों का मनुष्य पर होने वाले प्रभाव का प्रश्न है, वहां उसकी सचाई को नकारा नहीं जा सकता।
हम प्रभाव की दुनिया में जीते हैं। हम प्रभावित होते हैं। द्रव्यकर्म हमें प्रभावित करते हैं, आत्मा को प्रभावित करते हैं और आत्मा भी उनको प्रभावित करती है। दोनों का यह प्रभाव-क्षेत्र बन गया। उस प्रभाव-क्षेत्र में यह सारा का सारा चलता है। उस प्रभाव-क्षेत्र का नाम है-बंध । बंध का मतलब हैआत्मा और कर्म का प्रभाव-क्षेत्र । एक रचना हो गयी। अब प्रश्न होता है कि यह कैसे होता है ? यह कहां से आता है ?
यह सही है कि यह बाहर से आता है। बहुत दूर से नहीं। समूचे आकाशमंडल में कर्म की वर्गणाएं व्याप्त है। एक सची जितना अंश भी रिक्त नहीं है इन कर्म-वर्गणाओं से । समूचा आकाश खचाखच भरा है । हम यहां बैठे हैं। हमने जिस प्रकार के भावचित्त का निर्माण किया, हमारी जिस प्रकार की रागात्मक-द्वेषात्मक अनुभूतियां हुईं, हम वहीं बैठे-बैठे अपने आसपास के आकाश-मंडल से उन पुद्गलों को टान लेते हैं। टान लेने के बाद वे पुद्गल हमारे प्रभाव-क्षेत्र में आ जाते हैं। क्षणभर पहले जो आकाश में व्याप्त थे, वे अब हमारे प्रभाव-क्षेत्र में आ गये, हमारे संबंध-स्थापना की स्थिति में आ गये। उनका हमारे साथ पहले संबंध स्थापित नहीं था। पुद्गल पुद्गल के स्थान में थे और हम हमारे स्थान में, आत्मा आत्मा के स्थान में थी। किंतु जैसे ही भावचित्त बना, आसपास के पुद्गल आकर्षित हए या किये गये, वे पुद्गल हमारे आस्रव के द्वारा, भावकर्म के द्वारा, भावचित्त के द्वारा आकर्षित होकर हमारे प्रभाव-क्षेत्र में आ गये। उनके साथ हमारा संबंध स्थापित हो गया। यह है बंध ।
बंध की पूरी रासायनिक संरचना के बारे में भी हमें समझना है। जैसे ही पुद्गल हमारे प्रभाव-क्षेत्र में आते हैं, उनकी एक विशिष्ट संरचना हो जाती है। उसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
कर्म की रासायनिक प्रक्रिया (१) : १२१
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