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________________ संज्ञा होती है । इस संज्ञा के कारण प्रत्येक प्राणी आचरण करता है। हमारे आचरण का बहुत बड़ा भाग आहारसंज्ञा से प्रेरित है । भय की संज्ञा । हमारे बहुत सारे व्यवहार भय के कारण होते हैं। गाय कभीकभी मनुष्य को देखते ही रौद्र रूप धारण कर लेती है । आदमी ने उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ा, गाय का काम भी किसी को चोट पहुंचाना या मारना नहीं है, फिर वह रौद्र रूप क्यों ? इसका कारण है कि उसमें अनायास ही भय जाग गया । भय है आत्मरक्षा का । आत्मरक्षा में सबसे पहला आवेश भय जागृत होता हैं । डर लगता है कि मुझ पर कोई प्रहार न कर दे । भय जागते ही सारे शरीर में कंपन पैदा हो जाता है, तनाव पैदा हो जाता है । उसके पीछे भय की वृत्ति काम कर रही है । तीसरी है - मैथुन संज्ञा । मनोविज्ञान की भाषा में यह सेक्स की वृत्ति है । यह वृत्ति प्रत्येक प्राणी में होती है । चौथी है - परिग्रह संज्ञा । यह संग्रह करने की मनोवृत्ति है । आप यह न मानें कि केवल मनुष्य ही संग्रह करता है । पशु भी संग्रह करते हैं । पक्षी भी संग्रह करते हैं । मधुमक्खियां संग्रह करती ही हैं। छोटे-मोटे सभी प्राणी संग्रह करते हैं । जैन तत्त्वविदों ने यहां तक खोज की कि वनस्पति भी संग्रह करती है । वनस्पति में संग्रह की संज्ञा होती है । यह परिग्रह की मनोवृत्ति, यह छिपाने की मनोवृत्ति, यह संग्रह की मनोवृति - प्रत्येक प्राणी में होती है । यह एक वर्ग है चार संज्ञाओं का । दूसरा वर्ग है चार संज्ञाओं का, चार चित्तवृत्तियों का । वह भी प्रत्येक प्राणी प्राप्त है । कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसमें वह प्राप्त न हो । किन्तु थोड़ा-सा अन्तर है । मनुष्य में ये वृत्तियां जितनी विकसित होती हैं उतनी वनस्पति या छोटे प्राणियों में विकसित नहीं होतीं । किन्तु इनका अस्तित्व अवश्य है । वनस्पति में की संज्ञा होती है, मान की संज्ञा होती है, माया की संज्ञा होती है और लोभ संज्ञा होती है । वनस्पति में चारों संज्ञाएं होती हैं । किन्तु वे मनुष्य में जितनी स्पष्ट होती हैं, उतनी स्पष्ट नहीं होतीं । यह दूसरा वर्ग है चार वृत्तियों का । प्रथम वर्ग की चार वृत्तियों के कारण दूसरे वर्ग की ये चार वृत्तियां विकसित होती हैं, उभरती हैं। क्रोध पैदा होता है, रोटी के कारण। रोटी और पैसे के सवाल पर लड़ाइयां होती हैं, झगड़े होते हैं। आहार क्रोध का कारण बन जाता है । कुत्ते को रोटी डाली। दूसरे कुत्ते आ गये । आपस में झगड़ने लगे । रोटी गुस्से का, झगड़े का कारण बन गयी । एक आदमी को अच्छी आजीविका प्राप्त है। अच्छे स्थान पर है। दूसरा उस स्थान पर आने का प्रयत्न करता है। पहले वाले की नौकरी छुड़वाने का प्रयत्न करता है । क्रोध प्रारंभ होता है। मनमुटाव होता है । कलह होने लगता है । यह आजीविका या आहार के कारण होता है । ६८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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