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________________ एक व्यक्ति की आवश्यकताएं अच्छे ढंग से पूरी होती हैं। दूसरा उसे देखता है। उसकी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं। पहले व्यक्ति के मन में अहंभाव आ जाता है । अहंकार सदा दूसरे को देखकर ही आता है। अपने से हीन व्यक्ति को देखकर दूसरे को अहंकार करने का अवसर मिलता है। यदि सामने हीनता न हो तो अहंकार को प्रकट होने का अवसर ही नहीं मिल पाता। कर्म के उदय से भी अहंकार का भाव अचानक जाग जाता है । यह आकस्मिक होता है । उन परमाणुओं का वेदन करना होता है। परन्तु सामान्यत: अहंकार जागता है हीनता को सामने देखकर । दूसरे की हीनता पर अहंकार जागता है। एक आदमी को झाड़ लगाना है, दूसरे को नहीं। अहंकार जाग जायेगा। यह मेरे सामने झाड़ लगाने वाला है-यह अहंकार का निमित्त बनता है। आजीविका की वृत्ति पर भी अहंकार जागता है। ___आजीविका माया को भी जगाती है। रोटी और आजीविका के लिए, न जाने कितने लोग, किस प्रकार की माया का आचरण कर लेते हैं। माया जागती है । लोभ भी जागता है। धनार्जन के लिए कितने लोग किस प्रकार के लोभ का आचरण करते हैं। आहार की वृत्ति के कारण क्रोध आदि चार वृत्तियों की अभिव्यक्ति होती है। ___ भय के कारण भी चारों वृत्तियां पनपती हैं। इसी प्रकार मैथुन और परिग्रह की वृत्ति के कारण भी ये चारों वृत्तियां पनपती हैं, व्यक्त होती हैं। . परिग्रह से क्रोध की वृत्ति जागती है । अहंकार तो उसके साथ है ही। जिसके पास अधिक संग्रह है, परिग्रह है, वह निश्चित ही अहंकारी बना रहेगा। माया की वत्ति परिग्रह के कारण जांगती है। लोभ परिग्रह से जुड़ा हुआ है। . प्रथम वर्ग की चित्तवृत्तियों में दूसरे वर्ग की चित्तवृत्तियों को जगाने की क्षमता है, उन्हें उभारने की क्षमता है। तीसरा वर्ग है-ओघ संज्ञा और लोक संज्ञा। ओघ संज्ञा का अर्थ है सामुदायिकता की संज्ञा । मनुष्य में समूह की संज्ञा होती है, समूह की चेतना होती है, समूह में रहने की मनोवृत्ति होती है। मानसशास्त्री मेक्समूलर ने मनुष्य की एक वृत्ति का उल्लेख किया है। वह है-यूथचारिता। इसका अर्थ है समूह में रहने की मनोवृत्ति । इससे ओघ संज्ञा की तुलना की जा सकती है। यह है ओघ चेतना, समष्टि की चेतना, सामुदायिक चेतना। पशुओं में भी यह चेतना है, मनुष्य में भी यह चेतना है। इसीलिए गांव बसा, नगर बसा, समाज बना। समाज में रहने की मनोवृत्ति और समाज का अनुकरण करने की मनोवृत्ति को सामुदायिक चेतना कहते हैं । हम कई बार लोगों को ऐसा कहते हुए सुनते हैं कि 'जो सबको होगा वह हमें भी हो जायेगा। क्या अंतर पड़ेगा। जब सब ऐसा काम करते हैं, तो मैं क्यों नहीं करूं ! जो परिणाम सबको होगा, वह मुझे भी हो आचरण का स्रोत : ६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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