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________________ ज्ञान-सचेतना का उद्घोषक है १ शिक्षा वह है जो हाथों को आजीविका-उपार्जन सिखाये, और मानवीय दायित्वों का निर्वाह सिखाये जो शिक्षा पेट के लिए पराधीनता सिखाये और मन के लिए विलासिता वह किस काम की? २ समझदारी, साहसिकता और पुरुषार्थ-परायणता के समन्वय को प्रतिभा कहते हैं। ३ जो शिक्षा मनुष्य को धूर्त, परावलम्बी और अहंकारी बनाती हो, वह अशिक्षा से भी बुरी है । ४ आत्मज्ञान अपने घर में एक ऐसी ज्ञान-किरण छोड़ता है जिसके प्रकाश में भीतरी रचना को पढ़ा, समझा जा सकता ५ फूल की सुन्दरता और महक उसकी किसी पंखुड़ी तक सीमित नहीं है । वह उसकी समूची सत्ता के साथ गुंथी हुई है। ६ शिक्षा से मतलब केवल कुछ शब्द ही नहीं है। हृदय और मस्तिष्क की शक्तियों का प्रकृत विकास ही वास्तविक शिक्षा ७ गहन अध्ययन की अवस्था में मस्तिष्क स्थिर रहता है । ८ विद्या उसे कहते हैं जो सन्मार्ग पर चलाए और विनयशील बनाए। ६ विद्यालयों की शिक्षा पुस्तकों के आधार पर होने वाली शिक्षा है और जीवन-विज्ञान की शिक्षा जीवन की पोथी के आधार पर होने वाली शिक्षा है। १० प्रतिदिन का स्वाध्याय नवोदित सूर्य की तरह नया प्राणतत्त्व और नयी ऊर्जा प्रदान करता है। ११ जीवन-यात्रा को निर्बाध रखने के लिए बौद्धिक सात्विकता का होना अनिवार्य है। यह जीवन के हर मोड़ पर पायलट का कार्य करती है, आगे का संकेत देती है। ज्ञान-सचेतना का उद्घोषक है ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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