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१३ मन की शक्ति का विकास अभ्यास करते रहने में है, विश्राम
में नहीं। १४ स्वेच्छा से ग्रहण किये गए दुःख को ऐश्वर्य के समान भोगा
जा सकता है। १५ अपनी शक्ति का उपयोग करो, उसे छिपाओ मत ।
योगक्षेम-सूत्र
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