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________________ एक मां बराबर सौ गुरु १ ईश्वर सर्वत्र नहीं रह सकता था इसलिए उसने मां बनाई । २ माता बच्चे के भावात्मक जीवन की तारिका है । ३ मातृत्व महान् गौरव का पद है, इस पद में कहीं अपमान और धिक्कार और तिरस्कार नहीं मिला । माता का काम जीवनदान देना है । ४ मां के बलिदानों का प्रतिशोध कोई बेटा नहीं कर सकता, चाहे वह भूमण्डल का स्वामी ही क्यों न हो । ५ सिर पर मां का साया बने रहने तक बचपन छूटना नहीं । ६ 'मां' शब्द में कौन-सी ममता और स्नेह का कैसा अमृत भरा है जो निरन्तर दान किये जाने पर भी रिक्त नहीं होता । ७ माता की कोमल गोद ही शान्ति का निकेतन है । ८ माता बालक के साथ जितना प्रेम कर सकती है उतना दूसरा कौन कर सकता है ? ६ माता सबसे महत्त्वपूर्ण जीवनदायी सूत्र है, जिससे शक्ति, विवेक और नैतिक सम्पदा प्राप्त करता है । १० मां की मार में प्यार छुपा रहता है, गुरुओं की खार में निहित रहता है । ११ माता आप चाहे पुत्र को कितनी ताड़ना दे, वह गवारा नहीं करती कि कोई दूसरा उसे कड़ी निगाह से भी देखे । १२ ' माता का वात्सल्य धन्य है, धन्य-धन्य उसकी उदारता । सब कुछ हो पर मां न रहे तो जीवन में सारी असारता ॥' १३ "जिस घर के बच्चे संस्कारी । मनुष्य सुधार वह घर मात-पिता का आभारी ॥ " १४ मातृत्व ही नारी की सार्थकता है, यही उसके जीवन की चरम उपलब्धि है और है उसके जीवन- प्रदीप को प्रज्वलित करने वाला स्नेह | १५ जो नारी अपने पति तथा पुत्रों को सदैव सानन्द रखती है, उसके समक्ष संसार की महारानी का वैभव भी तुच्छ है । एक मां बराबर सौ गुरु १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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