SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य के पुजारी पर परिस्थिति का प्रभाव नहीं पड़ता १ जिसका मन सत्यशीलता में निमग्न है, वह व्यक्ति तपस्वी से भी महान और दानी से भी श्रेष्ठ है। २ तर्क का नहीं आत्मा का सत्य पूर्ण सत्य है। ३ सत्य से आकृष्ट होकर देवता भी सत्यवादी की सेवा में सदा तत्पर रहते हैं। ४ सच्चाई क्या है ? जिससे दूसरों को कुछ भी हानि न पहुंचे, उस बात का बोलना ही सच्चाई है। ५ उस झूठ में भी सत्यता की रंगत है जिसके परिणाम में नियमतः भलाई ही होती है। ६ सच बोलने का सबसे बड़ा फायदा यह कि तुम्हें याद नहीं रखना पड़ता कि तुमने किससे क्या कहा था। ७ जिस बात को तुम्हारा मन जानता है कि वह झूठ है उसे कभी मत बोलो, क्योंकि झूठ बोलने से स्वयं तुम्हारी अन्तरात्मा ही तुम्हें जलायेगी। ८ जो लोग इस संसार में अपने स्वार्थ के लिए या दूसरे के लिए अथवा विनोद या मजाक में भी असत्य नहीं बोलते; वे सत्यवादी स्वर्गगामी होते हैं। ह सत्य में हजार हाथियों के समान बल होता है, इसलिए अन्तिम विजय उसी की होती है, चाहे संघर्ष कितना ही लंबा क्यों न चले। १० निकम्मा शब्द भी सत्य का भंग करता है। यही कारण है कि मौन से ही सत्य का पालन आसान बन सकता है । ११ निर्मल अन्तःकरण को जिस समय जो प्रतीत हो, वही सत्य है । उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है । सत्य के पुजारी पर परिस्थिति का प्रभाव नहीं पड़ता १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy