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१२ आज के मनुष्य को पद, यश और स्वार्थ की तीव्र भूख लग गई है, जो बहुत कुछ बटोर लेने के बाद भी शान्त नहीं होती ।
१३ यदि किसी फकीर के पास एक रोटी है तो वह आधी रोटी खुद खाता है, आधी किसी गरीब को दे देता है । लेकिन अगर किसी बादशाह के पास एक मुल्क होता है तो वह एक और मुल्क चाहता है ।
१४ जैसे-जैसे मनुष्य भोगों को भोगता है, उसकी भोग तृष्णा बढ़ती जाती है । चिरकाल तक भोगों को भोग लेने पर भी जीव की तृप्ति नहीं होती । बिना तृप्ति के चित्त सदा व्याकुल एवं उत्कंठित रहता है ।
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योगक्षेम-सूत्र
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