SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूर्ख पक्षी दाना देखता है फन्दा नहीं १ लोभी धन देखता है, संकट नहीं । बिल्ली दूध देखती है, लाठी की प्रहार नहीं। २ गरीबी (निर्धनता) कुछ वस्तुएं चाहती है, विलास बहुत-सी वस्तुएं चाहता है, परन्तु लोभ समस्त वस्तुएं चाहता है। ३ लोभी आदमी रेगिस्तान की बंजर रेतीली जमीन की तरह है जो तृष्णा से तमाम बरसात और ओस को सोख तो लेती है मगर दूसरों के लाभ के लिए कोई फलद्रुम, जड़ीबूटी या पौधा नहीं उगाती। ४ लोभ जन्म देता है-पाचन-तंत्र की मंदता एवं हृदय-दुर्बलता को। ५ शक्ति, लोभ एवं करता का परस्पर गठबन्धन है। ६ क्या हम उन मछलियों की भांति नहीं हैं जो कि मछए के जाल में फंस गई हैं और तड़प रहीं हैं। ७ छोड़ देना आसान है, पकड़ रखना भी आसान है, पकड़े हुए को छोड़ देना अति कठिन है। ८ लोभ के कारण ही क्रूरता का भाव उभरता है। ६ महत्त्वाकांक्षी चित्त कभी भी आनन्दित नहीं हो सकता क्योंकि जो भी मिल जाएगा उससे वह सन्तुष्ट नहीं होगा और जो नहीं मिलेगा, उसके लिए पीड़ित हो जाएगा। १० जो सुख कल को दुःखदायी सिद्ध हो वह सुख दरअसल सुख है ही नहीं बल्कि दुःख का प्रारम्भ ही है। ११ यह बात दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि दुःख का कारण अज्ञान है और कुछ नहीं। १२ अनार्य मनुष्य जब भोग के लिए धर्म को छोड़ता है तब वह भोग में मूच्छित अज्ञानी अपने भविष्य को नहीं समझता। १३ हर विषयासक्ति चेतना की धारा को पतित करती है। १४ हमारी कुंजर जैसी आत्मा कीड़ी जैसे कर्मों में उलझकर भटक जाती है। मूर्ख पक्षी दाना देखता है फन्दा नहीं १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy