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________________ परमात्मा को पाना कठिन नहीं, इन्सान बनना मुश्किल १ मानव-‍ व चरित्र न बिल्कुल श्यामल होता है, न बिल्कुल श्वेत । उसमें दोनों ही रंगों का विचित्र सम्मिश्रण होता है, किन्तु स्थिति अनुकूल हुई तो वह ऋषितुल्य हो जाता है, प्रतिकूल हुई तो नराधम । मानवीय चरित्र इतना जटिल है कि बुरे से बुरा आदमी देवता हो जाता है और अच्छे से अच्छा आदमी पशु भी । २ एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी । ३ प्रसन्न रहना, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में अपने भीतर शांत होकर आनंद का निर्झर बहते देखना - मानव की सफल मानवता है । ४ मानव का मन एक विराट सागर है, जहां सैंकड़ों लहरें प्रतिक्षण उठती एवं विलीन होती है । ५ जो मन में सोता है अर्थात् चिन्तन-मनन में लीन रहता है, वह मानव है | ६ मानव - मन जितना सरल व सादे वेशभूषा में रहेगा, उतना ही शुद्ध व पवित्र रहेगा । ७ मनुष्य धरती पर अल्लाह का प्रतिनिधि है । ८ मनुष्य ही ईश्वर का जीवन्त मन्दिर है । 2 परमात्मा की उपासना में लम्बा समय लगता है, परमात्मा होने में लम्बा समय नहीं लगता । १० बड़ा चमत्कार है - अपने आपको पा लेना, चेतना के आकाश में उड़ना और आत्म - चैतन्य के अथाह समुद्र को तैरना । ११ आत्मा से आत्मा को देखो, परमात्मा बन जाओगे । १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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