________________
आपा उलके उलभिया, आपा सुलके सुलभिया
१ व्यक्ति स्वयं ही स्वयं को उलझाता है और स्वयं ही स्वयं को सुलझाता है।
२ सारे विघ्नों को समाप्त करने का सूत्र है - दूसरों की ओर झांकने की दृष्टि को कम करना और अपनी दृष्टि में आकर्षण पैदा करना ।
३ सहज जीवन नितान्त सरल है पर लोगों ने जानबूझकर उसे जटिल बना लिया है ।
४ मन में जिसके ऊपर कामनाओं का, महत्त्वाकांक्षाओं का जितना अधिक बोझ लदा होगा, वह बन्दर जैसी उछलकूद करके कुछ संग्रह कर सकता है और बालकों जैसा मोद मना सकता है, फिर भी इसके लिए जिन अन्तर्द्वन्द्वों में उलझे रहना पड़ता है, वे बेतरह थका देते हैं । हल्का मन रखकर खिलाड़ी की भावना से किये हुए सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही स्तर के कार्य सरल भी होते हैं और सफल भी । ५ मनुष्य को तीन बड़ी विपदाओं का सामना करना पड़ता है; मौत, बुढ़ापा और बुरे बच्चे । कोई भी घर मौत और बुढ़ापे से बच नहीं सकता, लेकिन हम उस घर को बुरे बच्चों से जरूर बचा सकते हैं ।
६ आज का मनुष्य न घर छोड़ सकता है, न घर में शांति से रह सकता है ।
७ जीवन में अनेक स्थितियां आती हैं, विषमताएं आती हैं। यदि हम आन्तरिक शक्तियों का उपयोग करें, अपने भीतर की शक्तियों का उपयोग करें तो बहुत सी विषमताओं को कम किया जा सकता है ।
मन की स्थिति बदलती है और सुख की स्थिति बदल जाती है ।
आपा उलके उलभिया, आपा सुलभे सुलभिया
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
&E
www.jainelibrary.org