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बुरे अन्तःकरण की यातना जीवित प्रात्मा का
नरक है
१ जो पुरुष अन्य पुरुषों की जीविका नष्ट करते हैं, अन्य लोगों का घर उजाड़ते हैं, अन्य लोगों की पत्नियों का उनके पतियों से वियोग कराते हैं और मित्रों में भेदभाव उत्पन्न करते हैं,
वे अवश्य नरक में जाते हैं। २ वे पुरुष जो ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें बताते हैं; किन्तु जिनके
हृदय में दया-भाव नहीं है, अवश्य नरक में जाते हैं। ३ अवसर का हाथ से निकल जाना और समय बीतने के बाद
यथार्थता का ज्ञान होना ही नरक है। ४ किसी का आशीर्वाद नहीं लें तो कुछ नहीं, किंतु किसी की
आह नहीं लेनी चाहिए। ५ अन्तःकरण जितना भ्रष्ट होता जाता है, बुद्धि का वैभव
उतना ही संकीर्णता अपनाता जाता है। ६ जब हम दूसरों को दुःख देने को आतुर होते हैं उसका इतना
ही अर्थ है कि दुःख हमारे भीतर भरा है और हम उसे किसी पर उलीच देना चाहते हैं । जैसे बादल पानी से भर जाते हैं तो पानी को छोड़ देते हैं जमीन पर । ७ यदि मन में स्वर्ग है तो सारे संसार में स्वर्ग है। मन में नर्क है तो सर्वत्र नरक है। जिनका मन चिन्ता और वासना की नारकीय यातनाओं से पीड़ित रहता है उनके लिए स्वर्ग का द्वार सदा-सदा बन्द रहता है। ८ नारकी में जाने या नारकी से आने वाले की पहचान है कि
वह रात-दिन क्रोध करता है, आर्तध्यान करता है। ६ मानसिक विषाद भयंकर अभिशाप है । बुरे अन्ताकरण की यातना जीवित आत्मा का नरक है
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