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________________ ८० मजिल के पड़ाव है । जब पांच व्यक्तियों से, दस, सो या हजार व्यक्तियों से कोई काम लेना है, तब यह सूत्र मूल्यवान् बन जाता है। जब तक उन व्यक्तियों में दाक्षिण्य भाव, दक्षता का भाव पैदा नहीं किया जाएगा, तब तक काम नहीं होगा। उन सबकी मानसिकता को जुटाना. यह सबसे बड़ी बात है। चाहे कोई व्यवस्था है, नियम या नियंत्रण है. कुछ भी करना है, सबसे पहले जनमत को तैयार करना होता है। जहां एकाधिनायकवाद रहा, उसमें भी यह क्रम चलता था-अमुक कार्य के लिए जनमत को तैयार करो । जहां लोकतन्त्र है, वहां तो चलता ही है । महत्त्वपूर्ण सूत्र है-जनमत को तैयार करो। इसीलिए बड़ी-बड़ी सरकारें जो प्रस्ताव लाना चाहती हैं, उसे पहले जनमत के लिए प्रगट कर देती हैं। इसका मतलब है जनमत का अनुकूलन । जब तक जनमत अनुकूल नहीं होगा, स्थितियां ठीक नहीं बनेंगी। जरूरी है जनमत का अनुकूलन ___ आगम और व्याख्या साहित्य में बार-बार कहा गया-साधु-साध्वियों के मत को जानना, उनको अनुकूल करना जरूरी है। अगर जनमत अनुकूल नहीं है तो चाहे लोकसभा में कानून बना दो, प्रस्ताव पारित कर दो, कुछ परिणाम नहीं आएगा। आजकल सांप्रदायिकता विरोधी मत को सरकारें अनुकूल नहीं बना पा रही हैं। जातीयता के बारे में गांधीजी से लेकर आज तक जो आंदोलन चला, उसका परिणाम कितना आया ? संविधान में भी कहा गया-छुआछूत को मिटा दिया जाए पर भयंकर छुआछ्त चल रही है। कारण क्या है ? कारण यही है-जनमत अनुकूल नहीं बना । दाक्षिण्य भाव पैदा करना अपेक्षित है। किसी काम को सिद्ध करने के लिए जनमत का अनुकुलन नहीं होता है, तो ऐसा धोखा चलता है फिर कोई काम नहीं होता । जब तक हृदय में यह बात नहीं बैठती-मुझे यह काम करना है मुझे धर्म और पुण्य करना है, तब तक कोई भी कार्य सफल नहीं होता। हर नियम और नियमन के पीछे जनमत का अनुकूल होना जरूरी है, इसीलिए आज बहत से देशों में हृदय परिवर्तन या ब्रन वाशिंग के विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। विशेषताओं को अजित करने के लिए विशेषता का सम्मान करना, दूसरों के अनुभवों का सम्मान करना और सबका सम्मान करना अपेक्षित है, यह तथ्य आज अधिक समझ में आ रहा है। उपकारी का सम्मान गुणों के उद्दीपन का चौथा सूत्र है-उपकार का सम्मान करना । विशेषता का सम्मान करना सीख जाएं, तो हमारे जीवन में अपने आप विशेषता का अवतरण शुरू हो जाएगा। जिस व्यक्ति ने थोड़ा-सा उपकार किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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