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मंजिल के पड़ाव
पृथ्वी में विशेषता न हो तो उसकी मुनि के साथ तुलना नहीं होती। कहां मुनि और कहां पृथ्वी ! एक चैतन्यमय और दूसरा मृण्मय । चैतन्यमय को कहा जाता है-पृथ्वी के समान बनो, पर पृथ्वी के लिए कहीं नहीं लिखा गया-तुम मुनि के समान बनो। पृथ्वी में अपनी विशेषता है। पाना तो आदमी को है। जहां मुनि का वर्णन किया वहां मुनि के लिए गुरु ही गुरु बतला दिए-सांप की तरह एक दृष्टि वाला बने । गेंडे के सींग की तरह अकेला रहने वाला बने, हाथी की तरह अपने पास रहने वाला बने । सबकी विशेषताओं का मुनि में नियोजन कर दिया। मेंढ़े की विशेषता बता दी गई-मेंढ़ा जब पानी पीता है, तो पानी को कभी गुदलाता नहीं है, गंदा नहीं करता है। एकदम धीमे-धीमे पानी पी लेता है। इतने सारे गुरु बतला दिए। इसका अर्थ यह है-इस पृथ्वी पर, इस दुनियां के जितने प्राणी हैं, जितने पौधे हैं, जितने छोटे-बड़े जीव-जन्तु हैं, उन सब में अपनीअपनी विशेषता है। गुणों का उद्दीपन : चार हेतु
भगवान् महावीर ने गुणों के उद्दीपन के चार हेतु बतलाए१. अभ्यासवर्तिता--गुण ग्रहण करने का स्वभाव । २. परछंदानुवर्तिता-पराए विचारों का अनुगमन । ३. कार्यहेतु-प्रयोजन सिद्धि के लिए जनमत को अनुकूल बनाना। ४. कृतप्रतिकृतक-कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करना ।
कहा गया-यदि तुम्हें विशेषता का जीवन जीना है, तो देखने वाली द्रष्टि का निर्माण करो, जिन विशेषताओं को देखो, उन विशेषताओं को अपने जीवन में संघटित करो। विशेषता को पाना चाहते हो तो विशेषता में मन का नियोजन करो। हम विशेषताओं को देखना शुरू करें। जो आदमी विशेषता को देखता है, वह आदमी स्वयं विशिष्ट बन जाता है । जिस व्यक्ति ने जैसा देखा, वह वैसा बन गया । जिसका ध्यान सदा कमियों में रहा, उसका अपना परिणमन सदा कमियों में होता चला गया। हम परिणमन के सिद्धांत को मानते हैं। पांच गाव हैं-औदयिक, औपशमिक आदि । यह सब परिणमन का सिद्धांत है । जिस प्रकार का सामने चित्र होगा, वैसा परिणमन होता चला जाएगा। ध्यान का भी यही सिद्धांत है । व्यक्ति वैसा बनेगा जैसा चित्र सामने रखेगा। एक अमेरिकन गर्भवती महिला बार-बार अपने कमरे में लगा हब्शी का चित्र देखती थी। उसके ऐसा लड़का जन्मा, जो उस चित्र से मिलता जुलता था । गोरे वंश में हब्शी जैसा काला लड़का जन्मा, यह था परिणमन का परिणाम । अभ्यासतिता
यह महत्त्वपूर्ण है-हमारे सामने क्या रहे ? हमारे सामने अच्छा
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