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मंजिल के पड़ाव
उस पर भी कषाय का प्रभाव नहीं है । उस समय यह स्थिति बनेगी-अमृत का घड़ा और अमृत का ढक्कन । भीतर में अकलुपित हृदय और वाणी भी मधुर-यह एक दुर्लभ संयोग है। भाव भीतर रहते हैं और भाषा बाहर आती है । भाव और भाषा-दोनों अमृतमय किसी महान् व्यक्ति को उपलब्ध होते हैं।
भावोतविद्यते पंसां, भाषा व्यक्ति नयत्यमुम् ।
द्वयोरपि सुधाभावं, प्राप्तः कश्चिद् महामनाः ।। अमृत का घड़ा : जहर का ढक्कन
यदि हृदय निर्मल है, किंतु वाक् तंत्र कलुषित है, तो हृदय अकलुषित और वाणी कड़वी हो जाएगी। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनकी वाणी में अवश्य कडुआहट होती है, पर हृदय में बड़ी पवित्रता, बड़ा प्यार होता है । यह नहीं मानना चाहिए-जो कडुआ बोलता है वह भीतर से भी वैसा ही कडुआ होता है । हर बात सापेक्ष होती है । कषाय की संवेदना हमारे भिन्न-भिन्न तंत्रों पर अपना-अपना काम करती है । कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनकी अभिव्यक्ति ही कड़वी है किंतु भीतर में पूरी पवित्रता और प्रगाढ़ निर्मलता बसी है। इसका तात्पर्य है---घड़ा अमृत का है और ढक्कन विष का। जहर का घड़ा : अमृत का ढक्कन
तीसरी कोटि का व्यक्ति वह है, जिसका हृदय कलुषित है और वाणी मधुर है । घड़ा है जहर का और ढक्कन है अमृत का। ऐसा व्यक्ति बड़ा खतरनाक होता है। दुनियां में सबसे खतरनाक वही है, जिसके भीतर में तो जहर भरा है और ऊपर अमृत का ढक्कन है । इसमें कहीं हित की बात नहीं होती । दूसरे के प्रति बहुत अहित छिपा रहता है । आज का एक शब्द है चमचागिरी । पुराना शब्द है चाटुकारिता । साहित्य में चाटुकारिता को बहुत खराब बतलाया गया है।
राजनीति में जितने भी अनर्थ हुए हैं, वे चमचों या चाटुकारों के द्वारा हुए हैं। पुराने जमाने में राजा मंत्री रखते तो सबसे पहले यह देखतेअमुक व्यक्ति चाटुकार तो नहीं है । यदि वह चाटुकार है तो राज्य का हित नहीं कर सकता।
यह तीसरा विकल्प बहुत खतरनाक है-विष का घड़ा और ढक्कन अमत का । ऐसे व्यक्ति की कथनी और करनी में भेद होता है। दोनों में कहीं सामजस्य नहीं रहता।
चौथा विकल्प है-हृदय भी कलुषित और वाणी भी कलुषित । ऐसा व्यक्ति खतरनाक तो है, पर उतना खतरनाक नहीं है । उससे होने वाले खतरे
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